राफेल मामले में अटॉर्नी जनरल ने किया बड़ा खुलासा, रक्षा मंत्रालय से अहम दस्तावेज चुरा लिए गए
सुप्रीम कोर्ट में राफेल सौदा मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कुछ गंभीर तथ्य अदालत के समक्ष रखे. उन्होंने न्यायालय को सूचित किया कि कुछ लोक सेवकों द्वारा मामले से जुड़े कुछ दस्तावेज चुराए लिए गए और अखबार में प्रकाशित किए गए. इस मामले में जांच जारी है.
उन्होंने कहा कि फाइल नोटिंग न्यायिक अधिनिर्णय का विषय नहीं हो सकता है. राफेल से जुड़े दस्तावेज किसने दिया है, इस पर जांच जारी है. हम आपराधिक कार्रवाई करेंगे. ये सभी बेहद अहम दस्तावेज थे. हालांकि अदालत द्वारा इसकी जांच नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने अदालत को बताया कि हम इस केस में ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत जांच कराने के बारे में सोच रहे हैं.
राफ़ेल डील मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने सौदे के बारे में रक्षा मंत्रालय की उस फ़ाइल नोटिंग को पेश किया, जिसे हिन्दू अख़बार ने छापा था, लेकिन अटॉर्नी जनरल ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि ये चोरी किया हुआ है जांच चल रही है. इस बारे में मुक़दमा किया जाएगा. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वह लंच बाद कोर्ट को बताएं कि अगर हिन्दू अखबार में खबर आठ फ़रवरी को छपी थी तो उसके बाद क्या कार्रवाई की गई? AG ने रक्षा मंत्रालय के नोट को संज्ञान मे लेने का विरोध किया और कहा कि यह गोपनीय दस्तावेज है. सुप्रीम कोर्ट लंच के बाद (2 बजे) फिर सुनवाई करेगा.
इस मामले की सुनवाई CJI रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसफ खुली अदालत में कर रहे हैं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को देखने के बाद खुली अदालत में सुनवाई की इजाज़त दी थी. दरअसल, फैसले के एक हिस्से में सुधार को लेकर सरकार ने अर्ज़ी दी हुई है, जबकि गलत जानकारी देने का आरोप लगाते हुए प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने पुनर्विचार याचिका दायर की हुई है.
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को राफेल को लेकर गलत जानकारी दी है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में फैसला देते हुए केंद्र सरकार को क्लीन चिट दी थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राफेल डील प्रक्रिया में कोई खामी नहीं हुई.
इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने फैसले में कहा था कि हमने इस मामले में तीन बिंदु- डीले लेने की प्रकिया, कीमत और ऑफसेट पार्टनर चुनने की प्रकिया पर विचार किया और पाया कि कीमत की समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं जबकि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत को लेकर कोई संदेह नहीं है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गत 31 अक्टूबर 2018 को सरकार को सील बंद लिफाफे में राफेल की कीमत और उससे मिले फायदे का ब्योरा देने का निर्देश दिया था. साथ ही कहा था कि सौदे की निर्णय प्रक्रिया व इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने की जितनी प्रक्रिया सार्वजनिक की जा सकती हो उसका ब्योरा याचिकाकर्ताओं को दे.
सरकार ने आदेश का अनुपालन करते हुए ब्योरा दे दिया है.सरकार ने सौदे की निर्णय प्रक्रिया का जो ब्योरा पक्षकारों को दिया है जिसमें कहा गया था कि राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है. 36 राफेल विमानों को खरीदने का सौदा करने से पहले डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल (डीएसी) की मंजूरी ली गई थी. इतना ही नहीं करार से पहले फ्रांस के साथ सौदेबाजी के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी, जिसने करीब एक साल तक सौदे की बातचीत की और खरीद सौदे पर हस्ताक्षर से पहले कैबिनेट कमेटी आन सिक्योरिटी (सीसीए) व काम्पीटेंटफाइनेंशियल अथॉरिटी (सीएफए) की मंजूरी ली गई थी.