अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवसः पीरियड्स को ले कर लडकियों ने छोड़ी शर्म, बदला समाज

पीरियड्स, महावारी या फिर महीना आना न जाने कितने नाम है इस प्रक्रिया के। भारत के दूर-दराज कस्बों व गांवों में आज भी इस बॉयोलोजिकल प्रक्रिया को एक टैबू के तौर पर माना जाता है, जैसे कि हमारे समाज में आज भी सेक्स के ऊपर खुलकर बात करना एक टैबू है। पीरियड को लेकर गांवों में कई तरह के अंधविश्वास हैं जिससे महिलाओं को प्रताड़ित होना पड़ता है। हालांकि बदलते वक्त के साथ पीरियड को लेकर समाज में फैले मिथ्यों को मीडिया व सोशल मीडिया ने तोड़ा है। चाहे वो फिल्म पैडमैन के जरिए या फिर सोशल मीडिया पर पैड के इस्तेमाल को लेकर चलाए गए कैंपेन के जरिए अब गांवों-गांवों में लड़िकयां व महिलाएं पीरियड को लेकर जागरूक हुई हैं। अब के समय में वो पीरियड को लेकर खुलकर बात करने लगी हैं।

हाल ही में ऑस्कर में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट का खिताब जीतने वाली फिल्म पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस में भारत के उत्तर प्रदेश में एक जिले में पीरियड को लेकर चल रही मुहिम को दर्शाया था, जिसे देशभर में पसंद किया गया। यह फिल्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के काठी खेड़ा गांव की रहने वाली युवती स्नेहा पर बनी थी।

इससे पहले फिल्म पैडमैन में भी पीरियड के दौरान इस्तेमाल होने वाले पैड को लेकर मुद्दा उठाया गया था। इस फिल्म में गांव के दूर-दराज इलाकों में पीरियड के दौरान इस्तेमाल होने वाले कपड़ों को लेकर लोगों को जागरुक किया। इसके अलावा अभिनेता अक्षय कुमार ने मुंबई के चर्च गेट रोड पर पैड की वेंडिंग मशीन लगवाई ताकि महिलाओं को पीरियड के दौरान कपड़े का इस्तेमाल न करना पड़े।

इसके इलावा बीबीसी द्वारा एक सिरीज चलाई गई, जिसमें उन्होंने लड़कियों के पहले पीरियड का अनुभव बताया है। इस खास पेशकश में देश के अलग-अलग हिस्सों से कई महिलाओं की कहानी प्रकाशित की गई। जिसमें महिलाओं व लड़कियों ने बताया कि उनको जब पहली बार पीरियड आया तो कैसा महसूस हुआ।

इस मुद्दे पर महिलाओं ने खुलकर बात की। जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे पहले पीरियड पर वो रोई थीं, या घबराईं थी या फिर जब मां ने पीरियड के बारे में बताया था तो कैसा लगा। इसके अलावा इस सिरीज के तहत लड़कियों ने ये भी बताया कि मां कैसे पीरियड के दौरान उनका ख्याल रखती थी या ये बात मां ने कैसे पापा से छुपाए रखा।

पीरियड्स के दौरान कई महिलाएं शर्म के चलते भी दुकान से सैनेटरी नैपकीन लाने में हिचकिचाती हैं। हालांकि सरकार की योजनाओं व सरकारी संस्थाओं के जागरुकता अभियान के चलते महिलाओं में सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने की संख्या बढ़ी है। मगर अभी भी पीरियड को लेकर लोगों को जागरुक करने की जरूरत है।

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