कसूरी की किताब का शिवसैनिकों किया विरोध, कुलकर्णी के चेहरे पर पोता कालिख

afr_1444697910 (1)पाकिस्तानी हस्तियों के विरोध को आगे बढ़ाते हुए शिवसैनिकों ने सोमवार को हद ही पार कर दी। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुधींद्र कुलकर्णी ने शिवसेना की धमकी को तवज्जो नहीं दी। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब का विमोचन समारोह भी रद्द करने से मना कर दिया। इससे नाराज शिवसैनिकों ने कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोत दी। इस मामले में देर रात 6 शिवसैनिकों को गिरफ्तार किया गया है।
कसूरी ने किताब लिखी है, “नीदर अ हॉक नॉर अ डव: एन इनसाइडर्स अकाउंट ऑफ पाकिस्तान्स फॉरेन पॉलिसी’। कुलकर्णी ने मुंबई में इसके विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया था। कुलकर्णी के मुताबिक, सुबह साढ़े नौ बजे के करीब माटुंगा के पास शिवसैनिकों ने उनकी कार रोकी। चेहरे पर कालिख मली और गालियां दी। इस पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। घटना के बाद कुलकर्णी उसी हालत में कसूरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे। उन्होंने कहा, “हम किसी से डरने वाले नहीं हैं।’
 
कुलकर्णी को पाकिस्तान का एजेंट भी बताया
संजय राउत ने कहा, “स्याही लगाना लोकतंत्र में प्रदर्शन का बेहद नरम तरीका है। कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि लोग कैसे गुस्सा उतारेंगे। पााक के पिट्ठू इस घटना को लेकर दुखी हैं। जब हमारे सैनिकों का खून बहता है और मासूम लोग आतंकी हमलों में जान गंवाते हैं, तब इनका खून क्यों नहीं खौलता।
 
हमें नहीं चाहिए देसी तालिबान : दिग्विजय
सिलसिलेवार ट्वीट्स में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, “उद्धव ठाकरे को अपने गुंडों पर काबू में रखना चाहिए। मैं सुधींद्र का पूरा समर्थन करता हूं। पहले गुलाम अली का कार्यक्रम और अब कसूरी का बुक लॉन्च। हम भारत में एक देसी तालिबान नहीं चाहते। जो भी लोग इस तरह के तालिबानी रवैये के खिलाफ हैं।’
 
राउत ने कहा था – शाम का कीजिए इंतजार
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी की किताब के विमोचन कार्यक्रम को नहीं होने देने की शिवसेना की धमकी बेअसर ही रही। दिन में शिवसेना सांसद संजय राऊत ने कहा था कि “शाम को क्या होता है, इसका सबको इंतजार करना चाहिए।’ कड़ी पुलिस व्यवस्था के कारण शिवसैनिक विरोध करने नहीं पहुंचे।
 
वहीं कसूरी ने कहा, “मैं कुलकर्णी पर कालिख पोतने से दुखी हूं। विरोध-प्रदर्शन के अधिकार का सम्मान करता हूं। लेकिन प्रदर्शन लोकतांत्रिक ढंग से होना चाहिए। मैं न तो करगिल के वक्त विदेश मंत्री था, न ही मुंबई हमले के समय।’

 

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