‘पिंक’ की नायिका ने बताया वर्जिनिटी और शादी का कनेक्शन
पिंक फिल्म बॉक्स ऑफिस पर छाई ही हुई है। साथ की इसके कलाकार भी आजकल खूब चर्चा में हैं। पिंक फिल्म वर्जिन होने, न होने से लड़कियों का चरित्र तय करने वालों से सवाल करती है। इसी सिलसिले में अमर उजाला ने बात की इस फिल्म की एक और कलाकार कीर्ति कुल्हारी से। कीर्ति ने सेक्स, वर्जिनिटी और रिलेशनशिप पर खुलकर बातें रखीं। कीर्ति ने इस बातचीत में फिल्म को लेकर भी कई बातें साझा की।
खुद कीर्ति कुल्हाड़ी के शब्दों में, ‘ वर्जिनिटी को न जाने लोगों ने हौव्वा क्यों मान लिया है? वह शब्द सुनते ही दिमाग में बिजलियां क्यों कौंधने लग जाती हैं? पहली बात तो यह कि हर किसी को प्यार, रिश्ते और सेक्स को एक्प्लोर करने का हक है। अगर किसी ने इन जज्बात को महसूस किया है तो क्या बुराई है? उन तीनों से संबंधित इमोशन इंसान की जरूरत हैं। लिहाजा लड़का हो या लड़की, उस पर वर्जिनिटी का मामला बना उसे सामाजिक और नैतिक कटघरे में खड़ा करना गलत है।
कीर्ति कहती हैं, ”दुर्भाग्य से इस चीज को जितना बड़ा हौव्वा बनाया जाता है, यह उतनी बड़ी बात है नहीं । इसे सहज भाव से लेने में पता नहीं क्यों लोग कतराते हैं? इस पर चुप्पी बरतते हैं। हम घर में अपने बच्चों को सेक्स एजुकेशन से संबंधित चीजों पर खुलकर बातें नहीं कर पाते। नतीजतन, बड़े होने पर उनके लिए यह चीज हौव्वा बनती है। नतीजा लड़कों के यौन हमलों के रूप में आते हैं।
वर्जिन होना भी सेफ शादी की गारंटी नहीं
‘मैंने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं, जहां वर्जिन होने पर भी शादी बाद तलाक हुए हैं। एक चाइनीज कहावत है, ‘ शादी उससे करो, जिनसे आप ढेर सारी बातें कर सकों। क्योंकि पचास बाद तो आप की शारीरिक जरूरतें वैसे भी खत्म हो जानी हैं। तब आप को एक-दूसरे के मेंटल सपोर्ट की जरूरत होगी। उस फेज में लगता है कि बेहतर समझ वाले पार्टनर का होना कितना जरूरी है?’ ‘
फ्रेंचाइज न बने पिंक
‘पिंक को खासी सफलता मिली है। यह अच्छी बात है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि इसे फ्रेंचाइज बनाया जाए। फिल्म की सफलता से भावनाओं में बहना नहीं चाहिए। ऐसी फिल्में मकसद प्रधान होती हैं। आप का मकसद प्योर हो तभी पिंक जैसी फिल्म बननी चाहिए। यह नहीं कि उसे फ्रेंचाइज बना पैसे बनाने की मशीन बना दें। हां, हमें आगे यौन हमले सरीखे किसी और मुद्दे पर फिल्म बनानी हो। अहम और बड़ी बात लोगों तक पहुंचानी हो तो हम पिंक नहीं किसी और रंग से हिंदुस्तानी सिनेमा को रंगना चाहेंगे।’
सेक्स बोलते हुए हिचके नहीं थे अमिताभ बच्चन
‘यह शर्म की बात है कि सेक्स और वर्जिन जैसे शब्दों को आज 21 वीं सदी में भी टैबू यानी प्रतिबंधित श्ाब्द माना जाता है। उन्हें बोलने वाले शख्स के कैरेक्टर पर सवाल उठने लगते थे। यह कितनी हास्यास्पद बात है, जिसकी कोई मिसाल नहीं। फिल्म में अमिताभ बच्चन ने इसलिए भ्ाी इरादतन सेक्स और वर्जिन का इस्तेमाल अपने डायलॉग में बार-बार किया। ताकि लोगों के दिमाग पर चढी धूल साफ हो सके। ‘