इस वजह से महिलाओं को कभी नहीं लेना चाहिए अपने पति को नाम, पढ़कर घूम जाएगा सर
हमारे भारत देश में पत्नियाँ अपने पति को भगवान का दरजा देती हैं और समाज शादीशुदा स्त्री से यह अपेक्षा रखता हैं की पत्नी अपने पति की सेवा करे| महर्षि वेदव्यास ने स्कंद पुराण में स्त्रियों के कर्तव्यों की विवेचना की है उन्होंने बताया है कि स्त्रियों को कभी अपने पति को नाम लेकर नहीं पुकारना चाहिए इससे उनकी आयु कम होती है जो स्त्रियां पतिव्रता धर्म को न निभाकर पराएं पुरुष से संबंध रखती है वह अपने कुल को तथा स्वयं को इस लोक में तथा परलोक में दुख का भागी बनाती हैं| स्कन्द पुराण के अनुसार व्यास जी कहते हैं जिस घर में पतिव्रता स्त्री होती हैं उनका जीवन सफल हो जाता है| पति की आयु बढ़ें इसलिए वह कभी भी पति के नाम का उच्चारण नहीं करती, पति के भोजन कर लेने पर वह भोजन करती हैं, पति के खड़े रहने पर वह खड़ी रहती है|
पतिव्रता स्त्री पति के सो जाने पर वो सोती हैं और उनके जागने से पहले उठ जाती हैं| यदि पति किसी और देश में हो तो वह अपने शरीर का श्रींगार नहीं करती| पतिव्रता स्त्री दरवाजे पर बैठती और सोती नहीं और वे दरवाजे पर देर तक खड़ी नहीं रहती| जो वस्तु देने योग्य ना हो वह किसी को नहीं देती| बिना पति की आज्ञा के वो विवाह उत्सव या तीर्थ यात्रा को नहीं जाती| रजस्वला होने पर भलीभाँती स्नान करके सबसे पहले पति के ही मुख का दर्शन करे और यदि पति घर पर न हो तो अपने मन में उनका ध्यान करके सूर्य का दर्शन करें| कभी अकेली न रहें और निर्वस्त्र होकर ना नहाये| माना जाता हैं की स्त्रियों के लिए यहीं उत्तम व्रत, महान धर्म और यही पुजा हैं|
पति की आज्ञा का उलंघन ना करें| एक पतिव्रता स्त्री के लिए शंकर और विष्णु भगवान से बढ़कर उसका पति होता हैं| जो पति की आज्ञा करके व्रत, त्यौहार इत्यादि करती हैं वो अपने पति की आयु हर लेती हैं| एक पतिव्रता स्त्री को अपने पति से उचें आसन पर नहीं बैठना चाहिए और उनको दूसरे के घर नही जाना चाहिए| जो खोटी बुद्धि वाली स्त्री अपने पति साथ छोडकर एकांत में विचरती हैं वह वृक्ष के खोखले में सोने वाली उल्लकी होती हैं| जो स्त्री अपने पति को छोड़कर वह दूसरे पुरुष को देखती हैं वो कानी और कुरूपा होती हैं| पतिव्रता स्त्री के लिए उसका पति ही सब कुछ ही होता हैं|
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पतिव्रता स्त्री से यमदूत भी डरते हैं| उस घर के पुरुष धन्य हैं जिसके घर में पतिव्रता स्त्री शोभा पाती हैं| पतिव्रता स्त्री के पुण्य से उसका पिता, माता और उसका पति इन तीनों कुलो की तीन-तीन पीढ़िया स्वर्गीय सुख भोगती हैं| पतिव्रता स्त्री के चरण जहाँ-जहाँ धरती को स्पर्श करता हैं वह भूमि तीर्थ स्थल में परिवर्तित हो जाता हैं| जिस तरह गंगा में स्नान करने से शरीर पवित्र होता हैं, उसी प्रकार पतिव्रता स्त्री का दर्शन करने पर सम्पूर्ण ग्रह पवित्र हो जाते हैं| पतिव्रता स्त्रियों में माता अंसुइयाँ, सती सावित्री, लक्ष्मी, अरुंधती, सुनीति, स्वाहा इत्यादि स्त्रियाँ प्राचीन समय की पतिव्रता स्त्रियाँ हैं|