अगर होली में पहनते हैं पुराने कपड़े तो तुरंत बदल दें ये अपनी आदत

आपने देखा होगा कि कई लोग रंग खेलने के लिए होली पर पुराने कपड़े पहनकर दोस्तों के बीच आते हैं। होली खेलने के लिए पुराने कपड़े निकालने वाले लोग इस बार ऐसा करने से पहले एक बार फिर सोच लें। ऐसा करना आपकी सेहत के साथ-साथ आपकी किस्मत भी बिगाड़ सकता है। आइए जानते हैं कैसे…

स्वास्थ्य की दृष्टि से अगर देखा जाए तो पुराने कपड़े पहनने से व्यक्ति कई तरह के रोगों की चपेट में आ सकता है। पिछले साल पहने हुए पुराने टाइट कपड़े पहनने से आमाशय पर दबाव पड़ने लगता है। जिसकी वजह से उदर में वायु, डकार आदि की तकलीफें हो जाती हैं। अमेरिकी इंटरनिस्ट इन स्टेमफोर्ड, डॉ.आक्टेवियो बेस्सा के अनुसार तंग कपड़े पहनने से आंतों की गति भी प्रभावित होती है। जिसकी वजह से भोजन के दो तीन घंटे बाद ही पेटदर्द होने लगता है I
यीस्ट संक्रमण
बता दें, इस मौसम में लोग कैंडिडा यीस्ट नाम के त्वचा के संक्रमण से सबसे ज्यादा पीड़ित रहते हैं। इस संक्रमण के चलते लोग खुद को नोंचने की हद तक खुजली करते रहते है। अगर इस समस्या को अनदेखा किया जाए तो यह दर्दकारी भी होता है Iइस तरह का संक्रमण अक्सर पुराने टाइट कपड़े पहनने से शरीर के पसीनेदार और गर्म स्थानों को अपनी चपेट में लेता है I
बता दें, इस मौसम में लोग कैंडिडा यीस्ट नाम के त्वचा के संक्रमण से सबसे ज्यादा पीड़ित रहते हैं। इस संक्रमण के चलते लोग खुद को नोंचने की हद तक खुजली करते रहते है। अगर इस समस्या को अनदेखा किया जाए तो यह दर्दकारी भी होता है Iइस तरह का संक्रमण अक्सर पुराने टाइट कपड़े पहनने से शरीर के पसीनेदार और गर्म स्थानों को अपनी चपेट में लेता है I
टाइट कपड़ों से हवा का संचार कम होने की वजह से यीस्ट की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है I जकार्ता के आर.एस.सी.एम. की डर्मेटोलाजी क्लीनिक के त्वचा और गुप्तरोग विभाग के डॉ. ब्रेमोनो के अनुसार सभी प्रकार के तंग कपड़े अनेक तरह के त्वचारोग देने में सक्षम हैं I जिसकी वजह से त्वचा पर सफेद, भुरे या लाल चकते, या रिंगवर्म संक्रमण या केन्डीडा का संक्रमण हो जाता है I
ज्योतिष शास्त्र की माने तो पुराने और फटे कपड़े व्यक्ति के शुक्र को प्रभावित करते हैं। शुक्र प्रेम, रोमांस और दांपत्य जीवन की मधुरता के लिए उत्तरदायी ग्रह माना गया है। ज्योतिष के अनुसार फटे कपड़े पहनने से हमारी शारीरिक क्षमता एवं ऊर्जा नष्ट होती है। इसके अलावा व्यक्ति का तन-मन शिथिल होकर अनेक बीमारियों को जन्म दे देता है।
ओशो का कहना है कि संपन्न समाज में उत्सव प्रवेश कर सकता है, गरीब समाज में उत्सव प्रवेश नहीं कर सकता। गरीब समाज में उत्सव धीरे-धीरे विदा होता जाता है। ऐसे लोगों के लिए उत्सव भी फिर एक काम बनकर रह जाता है।