अक्षय कुमार इस आम व्यक्ति से इतना प्रभावित हुए कि बना डाली इनके जीवन पर इतनी बड़ी मूवी
अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन 9 फरवरी को रिलीज हो रही है. ये फिल्म अरुनाचलम मुरुगनांथम की कहानी पर आधारित है. अक्षय उनका किरदार निभा रहे हैं. मुरुगनांथम ने सस्ता सैनेटरी पैड बनाकर करोड़ों महिलाओं की जिंदगी बदल दी. उन्होंने लाखों में आने वाली सैनेटरी पैड मैन्यूफैक्चरिंग मशीन की लागत सिर्फ 75 हजार रुपए कर दी. जानिए ये कैसे संभव हुआ.
अरुनाचलम मुरुगनांथम ने जब देखा कि उनकी पत्नी अपनी माहवारी के समय में गंदे कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं. उन्हें ये अनहाइजीनिक लगा. जब उन्होंने पत्नी से सैनेटरी पैड इस्तेमाल न करने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि वे इसे अफोर्ड नहीं कर सकतीं. ये हर महीने का खर्च है. मुरुगनांथम को हैरानी हुई कि 10 पैसे की कीमत वाली कॉटन से बना पैड 4 रुपए यानी 40 गुना ज्यादा दाम में क्यों बेचा जाता है. इसके बाद अरुनाचलम ने खुद ही सैनेटरी पैड बनाने का फैसला लिया.
अरुनाचलम मुरुगनांथम ने पाया कि देशभर में सिर्फ 12 फीसदी महिलाएं की सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. जब मुरुगनांथम ने इन्हें बनाना शुरू किया तो कोई इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहता था. यहां तक की उनकी बहन भी. इसके बाद उन्होंने मेडिकल कॉलेज की 20 स्टूडेंट को राजी किया. लेकिन इनसे भी उन्हें सही रिपोर्ट नहीं मिली. इसके बाद मुरुगनांथम ने इन्हें खुद पहनकर ट्राय करने का फैसला लिया. उन्होंने फुटबॉल ब्लैडर की मदद से एक कृत्रिम गर्भाशय बनाया.
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अरुनाचलम मुरुगनांथम के लिए अभी भी ये रिसर्च का विषय था कि आखिर असली सैनेटरी पैड में क्या होता है. उन्होंने इसे कई लैबोरेटरी में एनालिसिस के लिए भेजा, जहां से रिपोर्ट मिली कि ये कॉटन है, लेकिन ये काम नहीं कर सकती. इसके बाद उन्होंने सैनेटरी पैड बनाने वाली कंपनियों से पूछा, लेकिन वे भी भला असली पैड के बारे में कैसे बता सकती थीं. ये कोक का फॉर्मूला पूछने जैसा मामला था.
इसके बाद मुरुगनांथम ने एक प्रोफेसर की मदद से कई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को लिखा. उन्हें अंग्रेजी ज्यादा नहीं आती थी. मुरुगनांथम ने सिर्फ फोन पर बातचीत करने पर सात हजार रुपए खर्च किए. आखिरकार कोयंबटूर के टेक्सटाइल ओनर ने इसमें रुचि दिखाई. मुरुगनांथम को सफल सैनेटरी पैड बनाने में दो साल तीन महीने का समय लगा. लेकिन इसमें एक रुकावट यह थी कि मशीन की कीमत कम कैसे की जाए, क्योंकि इसकी लागत हजारों डॉलर में थी. इसकी कीमत पांच लाख से शुरू होकर 50 लाख तक जाती है. मुरुगनांथम ने कड़ी मेहनत कर अपनी मशीन तैयार की, जिसकी लागत सिर्फ 75 हजार रुपए आई.
इसके बाद मुरुगनांथम ने 18 महीने में 250 मशीनें तैयार कीं. इन्हें उन्होंने उत्तरी भारत के गरीब राज्यों में भेजा. इस तरह उन्होंने 23 राज्यों के 1300 गांवों को कवर किया. अब एक महिला एक दिन में 250 पैड बना सकती है. ये सिर्फ ढाई रुपए का बिकता है. मुरुगनांथम अपने इस करिश्मे के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित हो चुके हैं. अमित वर्मानी ने उनकी जीवनी “मेन्स्त्रुअल मैन” लिखी है.