राजधानी लखनऊ में बिकती है कब्र! दफनाने के लिए वसूली जाती है मोटी रकम
यूपी में कब्र बिकती है. सुनने में बेशक अटपटा लगे लेकिन ‘आज तक’ की तफ्तीश से सामने आया है कि यूपी की राजधानी लखनऊ में अधिकतर कब्रगाहों में कब्र की जगह देने के लिए डोनेशन के नाम पर हजारों-लाखों रुपए की रकम ली जा रही है.
शिया सेट्रल वक्फ बोर्ड को पिछले कई साल से ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि कब्रों की भी बोली लगाई जाती है. ‘आज तक’ को शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के जरिए ऐसे कागजात हाथ लगे हैं जिनसे पता चलता है कि कब्र बेचने-खरीदने का सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है. किसी अपने के इतंकाल के बाद उसे दफनाने के लिए कब्रगाह ले जाया जाता है तो पहले तो जगह नहीं होने का हवाला दिया जाता है. फिर मरने वाले के घर-परिवार से उसकी हैसियत के हिसाब से डोनेशन के नाम पर रकम वसूल ली जाती है. ये रकम हजारों से लाखों में होती है. एक तो वो परिवार पहले से ही अपने की मौत के गम से बेहाल होता है, ऊपर से कब्र की जगह देने के नाम पर उसकी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है.
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कब्रों को बेचे जाने की कई शिकायतें मिलने के बाद 2015 में अपनी ओर से जांच बिठाई थी. फिर जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर थाने में तहरीर भी दी थी. लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद लखनऊ के अधिकतर कब्रगाहों में कब्रों को बेचने का सिलसिला जारी है. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड खुल कर आरोप लगा रहा है कि कई कब्रिस्तानों में कब्र की जगह देने के बदले रकम वसूली जा रही है जिसे डोनेशन का नाम देकर गलत काम पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है.
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी कहते हैं कि पहले तो दफनाने के नाम पर डोनेशन लेना ही पूरी तरह गलत है. फिर डोनेशन के नाम पर भी जमकर फर्जीवाड़ा किया जाता है. डोनेशन के पैसे को दूसरे संगठनों के खातों में डाला जाता है और रसीद भी कम रकम की दी जाती है.
वसीम रिजवी के मुताबिक जो लोग पैसे का इतंजाम नहीं कर पाते, उन्हें लखनऊ के बड़े कब्रिस्तानों में अपनों को दफनाने के लिए जगह नहीं मिल पाती. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुताबिक ‘कब्रों की कालाबाजारी’ के सबूत भी उसके पास हैं. इसके लिए वसीम रिजवी डोनेशन के वक्त दी जाने वाली कुछ रसीद की कॉपी दिखाते हैं. इनमें 45 हजार रुपए से लेकर एक लाख तक की रकम डोनेशन के नाम पर लिए जाने का जिक्र है.
शिया सेट्रल वक्फ बोर्ड का कहना है कि उसकी एफआईआर पर पुलिस ने वैसी सक्रियता नहीं दिखाई जैसी कि उसे दिखानी चाहिए थी. अगर गंभीरता से कार्रवाई हुई होती तो कब्रों को बेचे जाने पर रोक लगाई जा सकती थी.
‘आज तक’ ने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की जांच रिपोर्ट को खंगाला तो सामने आया कि लखनऊ के एक बड़े कब्रिस्तान गुफरान माब में दफनाने की एवज में 2005 से 2010 के बीच 59 लाख 82 हजार 700 रुपए वसूले गए.
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड को कई लोगों ने डोनेशन की रसीद के साथ शिकायत भेजी हैं. जैसे कि 2010 में गजला जाफरी की कब्र के लिए 45 हजार रूपए और नीलोफर जाफरी की कब्र के लिए 50 हजार रुपए की रकम बतौर डोनेशन ली गई. इसी तरह 2009 में जहीरा बेग की कब्र के लिए 30 हजार रुपए वसूले गए. एक शख्स जेन रजा के मुताबिक उनकी चाची के इंतकाल पर कब्रिस्तान के मैनेजर ने सवा लाख रुपए लेकर कब्र के लिए जमीन दी थी. जेन रजा का कहना है कि उसके परिवार को बड़ी मुश्किल से इस रकम का इंतजाम करना पड़ा था.
तालकटोरा कब्रिस्तान के मुतवल्ली फैजी के मुताबिक कुछ साल पहले तक इस बड़े कब्रिस्तान में भी पैसे लेकर कब्र दी जाती थे. उनका कहना है कि आज भी कई कब्रिस्तानों में ये सब चल रहा है.
गुफरान माब लखनऊ के बड़े कब्रिस्तानों में से एक है. इस कब्रिस्तान के केयर टेकर इजहार हुसैन कब्र खरीदे और बेचे जाने से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि कुछ लोग अपनी मर्जी से जरूर डोनेशन देते हैं, जिसकी बाकायदा रसीद दी जाती है. इनकी कोई भी जांच करा सकता है.
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड जिसे ‘कब्रों की कालाबाजारी’ बता रहा है, वहीं कब्रिस्तानों के केयर टेकर उसे डोनेशन कह रहे हैं. उनका कहना है कि डोनेशन के पैसे से ही कब्रिस्तानों की देखरेख होती है. बहरहाल इतना साफ है कि आम इंसान के लिए मरने के बाद भी सुकून के साथ दफन होना आसान नहीं है.