अगर ऐसा ही रहा, तो बहुत जल्द फिल्मकार भी किसानों की तरह करने लगेंगे आत्महत्या
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हरीश ने बताया कि ‘एक किसान बिना बारिश और सरकारी सहायता के आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। बिल्कुल ऐसा ही फिल्म उद्योग में फिल्मकारों के साथ हो रहा है। किसी को भी फिल्म बनाने या सेंसर बोर्ड से हरी झंडी मिलने या प्रचार के दौरान कोई समस्या नहीं थी।’ उन्होंने कहा कि ‘लेकिन, बात जब फिल्म की रिलीज की आई तो असामाजिक तत्व रचनात्मक मीडिया को दबाने के लिए आगे आ गए। फिल्मकारों के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। मैं भी ऐसा ही महसूस कर रहा हूं।’
संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ का हवाला देते हुए हरीश ने कहा कि फिल्मकारों को आसानी से निशाने पर लिया जा सकता है और हमेशा से लिए जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह फिल्मकार ही हैं जिनमें सांप्रदायिक दंगों के बुरे प्रभाव को दिखाने की हिम्मत होती है..यह कला है और इसे इसी नजर से देखा जाना चाहिए। सेंसर बोर्ड ने फिल्म देखा और अगर कुछ गलत होता तो वे इसे रोक देते। यह कौन लोग हैं जो फिल्म की रिलीज रोकना चाह रहे हैं? फिर सेंसर बोर्ड के होने का अर्थ ही क्या रह जाता है?