अब नोटबंदी का एक साल: जानिए, कितने पूरे हुए वादे और कितना बदला देश?
साल 2016 की 8 नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ” भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम कसने के लिए हमने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का फैसला लिया है. ये नोट मध्यरात्री से (8 नवंबर,2016) लीगल टेंडर नहीं रहेंगे.” पीएम मोदी की इस घोषणा ने सब लोगों को हैरत में डाल दिया था. 8 नवंबर, 2017 को नोटबंदी को एक साल पूरा होने को है. इस बीच नोटबंदी ने भारत पर काफी गहरा असर डाला है. आगे जानिए कि नोटबंदी ने भारत को कितना बदला है और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर रहा.
इसलिए लाई नोटबंदी
नोटबंदी लाने की मोदी सरकार ने कई वजहें बताई हैं. इसमें कालेधन का खात्मा करना, सर्कुलेशन में मौजूद नकली नोटों को खत्म करना, आतंकवाद और नक्सल गतिविधियों पर लगाम कसने समेत कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने जैसे कई वजहें गिनाई गई हैं.
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नोटबंदी के बाद इतना पैसा लौटा बैंकिंग सिस्टम में
नोटबंदी के बाद 1.48 लाख बैंक खातों में 1.48 लाख करोड़ रुपये जमा किए गए. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने बताया कि इनमें से हर खाते में कम से कम 80 लाख रुपये जमा किए गए थे.1.48 लाख बैंक खातों में औसत डिपोजिट 3.3 करोड़ रुपये रही.
दो तिहाई बंद नोट वापस आए
छोटी डिपोजिट्स की बात करें, तो 2 लाख रुपये से लेकर 80 लाख रुपये तक इसमें शामिल किए गए हैं. लगभग 1.09 करोड़ बैंक खातों में इस दायरे में रकम जमा की गई. इन खातों में औसत डिपोजिट 5 लाख रुपये की थी. एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के बाद बंद नोटों का दो तिहाई भाग वापस बैंकिंग सिस्टम में लौटा है. अगस्त में भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया कि 15.3 लाख करोड़ रुपये की वैल्यू वाले बंद नोट वापस बैंकिंग सिस्टम में लौटे हैंं. इसका मतलब 99 फीसदी बंद नोट 30 जून तक बैंकिंग सिस्टम में लौटे.
इसको लेकर कुछ समीक्षकों का कहना है कि जब सारा पैसा वापस बैंकों में लौट गया है, तो ऐसे में सरकार कालेधन को पकड़ने में कामयाब नहीं रही है. सारा पैसा बैंक में वापस लौटने का मतलब है कि सरकार को कालाधन पकड़ने में किसी भी तरह की सफलता हाथ नहीं लगी है.
कालेधन के खिलाफ लड़ाई
मोदी सरकार का दावा है कि नोटबंदी ने कालेधन पर कड़ा प्रहार किया है. हिमाचल प्रदेशन में एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने बताया कि नोटबंदी के बाद बंद हुई 3 लाख कंपनियों में से 5 हजार कंपनियों के बैंक खातों से 4000 करोड़ रुपये होने का पता चला है. कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने शुरुआती जांच के आधार पर कुछ आंकड़े पेश किए हैं. मंत्रालय के मुताबिक 56 बैंकों से मिले डाटा के अनुसार 35000 कंपनियों के 58000 बैंक खातों में नोटबंदी के बाद 17 हजार करोड़ डिपोजिट हुए और निकाले गए. इस दौरान सरकार ने कई शेल कंपनियों का पता लगाने की बात भी कही है.
भल्ला का दावा, नोटबंदी कालेधन को पकड़ने में सफल
इकोनॉमिस्ट और आर्थिक मामलों की समिति के सदस्य सुरजीत भल्ला का अनुमान है कि नोटबंदी के बाद लगभग सारा कालाधन पकड़ में आया है. इससे सरकार को पहले साल में 2.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व होगा. इसके बाद आने वाले कुछ सालों तक केंद्र को इसकी वजह से 1.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई होगी.
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नकली नोटों पर क्या रहा असर
अब तक मौजूदा रिकॉर्ड बताता है कि इस मोर्चे पर नोटबंदी सफल नहीं रही है. इस साल आई एक रिपोर्ट के मुताबिक 1000 रुपये के जितने बंद नोट वापस बैंकों में लौटे हैं, उसमें सिर्फ 0.0007 फीसदी ही नकली नोट थे. बंद 500 रुपये की नोट की बात करें, तो इसमें भी सिर्फ 0.002 फीसदी नकली नोट रहे. वहीं, राष्ट्रीय जांच एजेंसी के मुताबिक 2015 तक 400 करोड़ रुपये के नकली नोट सर्कुलेशन में थे. समीक्षकों का कहना है नोटबंदी नकली नोटों को बड़े स्तर पर पकड़ने में नाकामयाब रही है.
डिजिटलीकरण और नोटबंदी
नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में बढ़ोत्तरी हुई है. पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक नोटबंदी के बाद कैशलेस लेनदेन की रफ्तार 40 से 70 फीसदी बढ़ी है. पहले यह रफ्तार 20 से 50 फीसदी पर थी. भले ही नोटबंदी के बाद कैशलेस लेनदेन में बढ़ोत्तरी देखने को मिली, लेकिन कुछ महीनों बाद ही इसमें कमी आने लगी और लोग फिर नगदी पर आ गए.
लेकिन घटने लगे हैं कैशलेस ट्रांजैक्शन
पिछले साल नवंबर महीने में 67.149 करोड़ डिजिटल ट्रांजैक्शन हुए थे. दिसंबर महीने में यह बढ़कर 95.750 करोड़ पर पहुंच गए. हालांकि इस साल जुलाई तक यह आंकड़ा घटकर 86.238 करोड़ पर आ गए. रिकॉर्ड्स के मुताबिक आरटीजीएस और एनईएफटी ट्रांसफर 2016-17 में क्रमश: 6 फीसदी और 20 फीसदी बढ़े हैं.
वृद्धि दर पर असर
नोटबंदी की घोषणा के बाद की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई. पिछले साल इस दौरान यह 7.9 फीसदी पर थी. इसके बाद अप्रैल-जून तिमाही में वृदि्ध दर और भी कम हुई और यह 5.7 फीसदी पर पहुंच गई. पिछले साल इस दौरान यह 7.1 फीसदी पर थी. हालांकि फिलहाल इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है कि क्या वृद्धि दर घटने के पीछे नोटबंदी वजह है कि नहीं. इसके लिए जीएसटी को कुछ हद तक जिम्मेदार माना जा रहा है.
नक्सल और आतंकवाद पर मार
नोटबंदी को लागू करने के दौरान यह भी कहा गया था कि इससे आतंकवाद और नक्सली गतिविधियों पर लगाम कसेगी. लेकिन एक साल बाद भी ऐसा कोई पुख्ता डाटा नहीं है, जो ये बता सके कि इन गतिविधियों पर कितनी रोक नोटबंदी की वजह से लगी हुई है. कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि नक्सली गतिविधियों में कमी देखने को जरूर मिल रही है.
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6 महीनों के इंतजार से कुछ निकलेगा
नोटबंदी को लेकर जहां कुछ अर्थशास्त्री सकारात्मक रुख रखते हैं, तो कई का मानना है कि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी कहा है कि नोटबंदी की वजह से लघु अवधि में इकोनॉमी को नुकसान जरूर पहुंचा है, लेकिन लंबी अवधि में इसका फायदा नजर आएगा. सुरजीत भल्ला कहते हैं कि नोटबंदी का असर देखने के लिए 6 महीने और इंतजार कर लें. इस दौरान डाटा आ जाएगा और पता चल जाएगा कि नोटबंदी पास हुई या फेल.