सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के असली बॉस की घोषणा की, केजरीवाल को लगा बड़ा झटका

‘आपकी चुनी हुई सरकार है। आप दिल्ली को चलाने वाले कानून का हिस्सा हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि आप कानून के दायरे में रहकर काम नहीं करना चाहते हैं।’ -सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के असली बॉस की घोषणा की, केजरीवाल को लगा बड़ा झटकासुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान के तहत पहली नजर में उपराज्यपाल (एलजी) ही दिल्ली के बॉस हैं। प्रशासनिक मामलों में दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित हैं। किसी भी मामले पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच मतभेद होने की स्थिति में मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए। जब तक राष्ट्रपति की ओर से कोई निर्णय नहीं ले लिया जाता तब तक उपराज्यपाल जो जरूरी हो, उसके अनुसार काम कर सकते हैं, लेकिन उपराज्यपाल मसले को दबा कर नहीं रख सकते।
 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच किसी मामले में मतभेद होने पर उपराज्यपाल को अपने अधिकार का इस्तेमाल करने में निष्पक्षता का तत्व दिखाना चाहिए। संविधान के तहत उपराज्यपाल को प्रमुखता दी गई है।’
 

पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच का टकराव संविधान के अनुच्छेद-239 एए (1991 में किए गए 69वें संशोधन) को लेकर है जो साफ-साफ कहता है कि किसी मामले में मतभेद होने की स्थिति में उपराज्यपाल की ओर से लिया गया निर्णय अंतिम होता है। पीठ ने कहा कि भूमि, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़ दिल्ली सरकार अन्य विषयों पर निर्णय ले सकती है लेकिन ये निर्णय भी वह संसद के द्वारा पारित कानूनों के तहत ही ले सकती है।
 

पीठ की प्रथम दृष्टया टिप्पणियों से दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने सहमति जताते हुए कहा कि संविधान और कानून के प्रावधानों में ‘तालमेल और सामंजस्य होना चाहिए। इस पर पीठ ने सरकार से कहा, आप तालमेल और सामंजस्य की बात करते हैं। आपकी चुनी हुई सरकार है। दिल्ली को चलाने वाले कानून का हिस्सा हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि आप कानून के दायरे में रहकर काम नहीं करना चाहते हैं।’
 

…तो चुनी हुई सरकार का क्या मतलब
दिल्ली सरकार के वकील सुब्रह्मण्यम ने कहा, ‘उपराज्यपाल सर्वोच्च हैं, लेकिन उनके वीटो पावर के सामने मुख्यमंत्री व मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने के सिद्धांत को प्रभावहीन नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा नहीं होगा तो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार और उसके मंत्रिमंडल का क्या मतलब है।’ उन्होंने यह भी कहा कि हम संसद की सर्वोच्चता को लेकर संघर्ष नहीं कर रहे हैं। 
 

मंत्रियों की बात नहीं सुनते नौकरशाह 
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। चुनी हुई सरकार को काम करने के लिए उसके पास कुछ तो अधिकार होने चाहिए। उन्होंने कहा कि हालत यह है कि नौकरशाह मंत्री को विभाग का प्रमुख ही नहीं मानते। वे मंत्रियों की बात नहीं मानते हैं। नतीजा, सरकार कोई निर्णय नहीं ले पाती है। दिल्ली केलोगों की जिम्मेदारी होने के बावजूद मुख्यमंत्री निर्णय नहीं ले सकते। उन्होंने उदाहरण के लिए निगम स्कूलों में शिक्षकों के नियमितीकरण और डॉक्टरों की नियुक्ति से संबंधित लंबित फाइलों का जिक्र भी किया। इस पर पीठ ने कहा कि आप सिर्फ संवैधानिक मसले पर बहस करें। मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को होगी। 
 

हाईकोर्ट ने भी दी थी एलजी को प्रमुखता
दिल्ली में अधिकारों की जंग पर हाईकोर्ट ने पिछले साल अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं। इस फैसले के खिलाफ अरविंद केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मसले का निपटारा करने के लिए सविधान पीठ का गठन करने का अनुरोध किया था।
 
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