‘बाबू मोशॉय’ बनना चाहते थे टॉम ऑल्टर
उन्हें उनके नाम से भले सभी न जानते हों, लेकिन ‘वो अंग्रेज एक्टर’ कहते ही सभी के जहन में एक ही चेहरा उभरता है, टॉम ऑल्टर का. चेहरा अंग्रेज और जुबान हिंदी-उर्दू में इतनी नजाकत से की सुनने वाले सुनते ही रह जाएं. वह भारतीय सिनेजगत में ऑफबीट कैरेक्टर्स के मेनस्ट्रीम एक्टर थे. लेकिन हम आपको यहां बताएंगे अंग्रेजी-स्कॉटिश वंश के अमेरिकी ईसाई मिशनरियों के पुत्र भारत में ही जन्मे और भारत की मिट्टी में पगे टॉम ऑल्टर के फिल्मों में आने के बारे में.
18 की उम्र में अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी गए पढ़ने, लेकिन मन नहीं लगा. बीच में छोड़कर वापस चले आए. अगले कुछ वर्ष उनके भटकने के वर्ष रहे. कई नौकरियां कीं, कई शहरों में भटके. इसी दौरान हरियाणा के जगधरी में वह करीब छह महीने रहे, जहां वह सेंट थॉमस स्कूल में शिक्षक थे. इस दौरान उन्होंने जगधरी में हिंदी फिल्में देखनी शुरू कीं. लेकिन बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ ने 19 वर्ष के टॉम ऑल्टर को इतना प्रभावित किया कि उसी सप्ताह उन्होंने इस फिल्म को तीन बार देख डाला. अगले दो साल तक उनके जहन में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर चलती रहीं. अब बस वह राजेश खन्ना बनना चाहते थे.
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फिल्मों में आने का फैसला कर टॉम ने पुणे के एफटीआईआई में प्रवेश लिया. एफटीआईआई में रहते हुए टॉम ने बैचमेट बेंजामिन गिलानी और जूनियर नसीरुद्दीन शाह के साथ एक कंपनी “मोटली” स्थापित की और रंगमंच पर कदम रखा. और आज वह भारतीय रंगमंच इतिहास के स्तंभ पुरुष के रूप में जाने जाते हैं.
रंगमंच पर उनके एकल नाटकों के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली, जिसमें मशहूर शायर मिर्जा गालिब पर इसी नाम के प्ले और मौलाना अबुल कलाम आजाद पर आधारित प्ले ‘मौलाना’ में निभाए उनके एकल अभिनय को हमेशा याद रखा जाएगा.
जहां तक राजेश खन्ना बनने की बात है तो बकौल टॉम ऑल्टर उन्होंने ‘चमेली मेम साहेब’ में निभाए गए एक अंग्रेज के किरदार को अपने अंदाज में राजेश खन्ना बन निभाया था. उत्तराखंड के मसूरी में जन्मे टॉम के नाम 250 से अधिक फिल्में हैं. उन्होंने सत्यजीत रे से लेकर श्याम बेनेगल तक भारतीय फिल्म जगत के लगभग सभी चोटी के निर्देशकों के साथ काम किया. अंग्रेज एक्टर के रूम में लोकप्रिय टॉम ने विविधता से भरे किरदारों को निभाया.
टॉम ने फिल्म ‘चरस’ से फिल्मी सफर शुरू किया और उसके बाद शतरंज के खिलाड़ी, देश-परदेश, क्रांति, गांधी, राम तेरी गंगा मैली, कर्मा, सलीम लंगड़े पे मत रो, परिंदा, आशिकी, जुनून, परिंदा, वीर-जारा, मंगल पांडे जैसी फिल्मों में निभाए किरदारों ने उन्हें हमेशा के लिए भारतीय सिनेमानस का स्थायी अभिनेता बना दिया.
उन्होंने कई बेहद लोकप्रिय धारावाहिकों में भी काम किया, जिसमें भारत एक खोज, जबान संभालके, बेताल पचीसी, हातिम और यहां के हैं हम सिकंदर प्रमुख हैं.
आम धारणा के विपरीत टॉम को अंग्रेजों जैसे लुक होने का फायदा ही मिला और फिल्मों में शुरुआत करने में खास परेशानी नहीं हुई. आज के दौर में टॉम की वह बात सबसे यादगार है, “मैं कोई गोरा नहीं, बल्कि एक देसी आदमी हूं और मुझे भारत में धर्मनिरपेक्षता यहां की सबसे अच्छी बात लगती है.”