लखनऊ. शनिवार को लखनऊ के रामाबाई अंबेडकर मैदान में होने वाले सपा के राज्य सम्मेलन से संस्थापक मुलायम सिंह यादव, भगवती सिंह, शिवपाल यादव, आजम खां दूर रहेंगे। यानी सम्मेलन में वे लोग होंगे, जो पार्टी बनने के बाद सपा में आए हैं। जाहिर है अब समाजवादी पार्टी का चेहरा और नीति दोनों नई हो जाएगी। वैसे भी समाजवादी पार्टी के अंदरूनी संग्राम में सुलह की जो गुंजाइश थी, वह भी गुरुवार को खत्म हो गई। गुरुवार को लोहिया ट्रस्ट की बैठक में सचिव रामगोपाल यादव को बाहर का रास्ता दिखाते हुए शिवपाल यादव को सचिव नियुक्त कर दिया गया। समाजवादी परिवार के दोनों धड़ों का रास्ता अलग हो चुका है जिससे पार्टी भी दो हिस्सों में बंट चुकी है। जाहिर तौप पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सपा पर एकाधिकार हो गया है। कहा तो यही जा रहा है कि भले ही मुलायम सिंह अभी भी पार्टी के संरक्षक बने हुए हों, पर उन्हें सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण ही नहीं मिला है। मतलब यह कि अखिलेश यादव ने भी ठान लिया है कि अब मुलायम और शिवपाल यादव का पार्टी से कोई मतलब ही नहीं रहने देना है।
लोहिया ट्रस्ट की बैठक के संकेत
लोहिया ट्रस्ट की गुरुवार को हुई बैठक में जिस तरह से रामगोपाल यादव को बाहर का रास्ता दिखाया गया, उसकी उम्मीद पहले से थी। क्योंकि मुलायम खुद कई मौकों पर परिवार के बिखराव के लिए रामगोपाल को दोषी ठहराया चुके हैं। उनके निकालने के साथ ही अखिलेश यादव को ट्रस्ट से बाहर न निकालने के पीछे इस पर दूरगामी सोंच है। दरअसल, दिसंबर 2016 में जब मुलायम ने रामगोपाल के साथ अखिलेश को सपा से निकाला था, उस समय सपा के रणनीतिकारों ने कहा था कि यह रणनीतिक चूक है। अखिलेश को सपा से नहीं निकाला जाना चाहिए थे। मुलायम ने उसी से सबक लेकर इस बार सिर्फ रामगोपाल को बाहर किया। यह इत्तिफाक भी है कि रामगोपाल यादव का जनाधार नहीं है, उनका प्रभाव सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिली ताकत के चलते ही है। दरअसल, मुलायम अब भी समाजवादी पार्टी के संरक्षक हैं। उन्हें अब भी सुलह की कोई गुंजाइश बाकी दिखती है। राज्य सम्मेलन में जहां पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के बड़े-बड़े कटआउट लगाए जा रहें है, उसमें मुलायम का चेहरा मौजूद होने से दोनों ओर से संभावनाएं बरकार रखने का संदेश ही माना जा रहा है। शनिवार को सम्मेलन और 25 सितंबर को मुलायम सिंह यादव द्वारा बुलाई गई प्रेस वार्ता काफी महत्वपूर्ण होगी। क्योंकि इसमें ही तय हो जाएगा कि अब क्या होना है। इस बात के संकेत भी मिलने लगे हैं कि 25 की पत्रकार वार्ता में मुलायम के साथ जनता दल के अध्यक्ष सुनील भी मौजूद रहेंगे और वह पहले ही मुलायम के नेतृत्व में आगे बढ़ने का एलान कर चुके हैं। शिवपाल यादव भी कह रहे हैं कि जल्द ही नई पार्टी के गठन की घोषणा की जाएगी। इन सबके लिए अब भी अखिलेश यादव को ही दोष दे रहे हैं। उनका कहना है कि अखिलेश यादव की जिद के कारण परिवार में एकजुटता संभव नहीं हो पा रही है।
राज्य सम्मेलन का भावी निष्कर्ष
छह माह पहले तक समाजवादी पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव था। मुलायम सिंह यादव अथवा अखिलेश यादव इस बात को न समझते हों ऐसा भी नहीं था। इसके बावजूद परिवार में एकजुटता का कोई भी प्रयास काम नहीं आया। यादव कुनबे में मचा घमासान पिछले साल 24 अक्टूबर को नया मोड़ ले लिया था। अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में एक बैठक के दौरान धक्का-मुक्की तक हो गई थी। फिर टिकट बंटवारे को लेकर विवाद हुआ। अपने पिता मुलायम सिंह यादव का तख्ता पलट कर अखिलेश यादव खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष पद विराजमान हो गए। पार्टी के चुनाव चिन्ह पर कब्जा कर लिया। कुल मिलाकर कुनबे की इस रार से विधानसभा चुनाव में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। सपा अब जब सबकुछ गंवा चुकी है। उसके पास फिलहाल खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है, तो फिर इस पार्टी पर काबिज अखिलेश यादव फिर किसी को करीब आने देंगे इसमें संदेह है। इस लिहाज से राज्य सम्मेलन का निष्कर्ष साफ दिख रहा है कि सपा अब नई हो जाएगी। पुराने लोगों से इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यह अलग बात है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। सत्ता के लिए पिता-पुत्र अलग हो सकते हैं तो उसी सत्ता के लिए एक भी हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल की परिस्थितियों में ऐसी कोई सूरत दिखी नहीं देती। अब देखना यही है कि 25 सितंबर को प्रेस वार्ता में मुलायम सिंह यादव क्या पत्ते खोलते हैं। जो कुछ बचा रह जाएगा वह भी पांच अक्टूबर से पहले सामने आ जाएगा।