जानें क्यों?.. किसी भी देश के नागरिक नहीं है रोहिंग्या मुसलमान
भारत ने म्यांमार से आए करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को देश में पनाह देने से इनकार कर दिया है. बौद्ध बहुल म्यांमार में करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. इनको मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है. म्यांमार सरकार ने कई पीढ़ियों से रह रहे इस समुदाय के लोगों की नागरिकता छीन ली है. रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखाइन प्रांत में सदियों से बसे हैं. लगभग सभी रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन (अराकान) राज्य में रहते हैं. यह सुन्नी मुसलमान हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान?
माना जाता है कि रोहिंग्या मुसलमान 12वीं सदी में म्यांमार चले गए थे. ब्रिटिश शासन के दौर में 1824 से 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मजदूर म्यांमार ले जाए गए. चूंकि म्यांमार भी ब्रिटेन का उपनिवेश था इसलिए वह उसे भारत का ही एक राज्य मानता था. इसी वजह से तब इस आवाजाही को देश के भीतर की आवाजाही ही मान जाता रहा. ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद म्यांमार की सरकार ने इस प्रवास को अवैध घोषित कर दिया. इसी के आधार पर बाद में रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता समाप्त कर दी गई.
वर्ष 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद देश का नागरिकता कानून बना. इसमें रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया. जो लोग दो पीढ़ियों से रह रहे थे उनके पहचन पत्र बनाए गए. बाद में कुछ रोहिंग्या मुसलमान सांसद भी चुने गए. सन 1962 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के बुरे दिन शुरू हो गए. उनको विदेशी पहचान पत्र ही जारी किए गए. उन्हें रोजगार, शिक्षा सहित अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया गया. सन 1982 में एक और नागरिक कानून आया और इसके जरिए रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता पूरी तरह छीन ली गई. इस कानून से शिक्षा, रोजगार, यात्रा, विवाह, धार्मिक आजादी और स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ से भी उनको महरूम कर दिया गया.
इसे भी पढ़े: ओबामा ने इस बात को लेकर ट्रंप की निंदा, कहा- प्रवासियों को…
रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को रोहिंग्या या रुयेन्गा कहा जाता है. रोहिंग्या म्यांमार के 135 जातीय समूहों में अधिकृत रूप से शामिल नहीं हैं. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर बहुत बंदिशें हैं. उनको बिना अधिकारियों की अनुमति के देश के दूसरे हिस्सों में जाने-आने की अनुमति नहीं है. इनके इलाके में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की इजाजत नहीं है. इसके अलावा वे नए स्कूल, मकान, दुकान और मस्जिद भी नहीं बना सकते हैं.
रोहिंग्या समुदाय का दमन
म्यांमार में पिछले माह मौंगडोव सीमा पर नौ पुलिस अधिकारियों की हत्या हो गई. इसके बाद रखाइन स्टेट में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने बड़ी कार्रवाई शुरू की. सरकार का दावा है कि पुलिस पर हमला रोहिंग्या मुसलमानों ने किया. सुरक्षा बलों ने मौंगडोव जिले की सीमा सील कर दी है और वे व्यापक अभियान चला रहे हैं. सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सौ सै ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. म्यामांर के सुरक्षा बलों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं. सैन्य कर्मियों पर बलात्कार और हत्या के आरोप भी लगे हैं. बताया जाता है कि रोहिंग्या समुदाय पर हेलिकॉप्टरों से भी हमले किए जा रहे हैं. पिछले छह हफ्तों में रोहिंग्या मुसलमानों के 1200 घरों को तोड़ दिया गया.
आंग सान सू ची की दुनिया भर में निंदा
म्यांमार में पिछले साल हुए चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को जबर्दस्त जीत मिली. यहां यह चुनाव 25 वर्ष बाद हुए थे. संवैधानिक नियमों के चलते सू ची चुनाव जीतकर भी राष्ट्रपति नहीं बन सकीं. वे स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं. हालांकि माना जाता है कि सू ची के हाथ में ही देश की वास्तविक कमान है. आरोप है कि देश की सरकार और सेना रोहिंग्या समुदाय का नरसंहार कर रही है, उनकी बस्तियों को जलाया जा रहा है, उनकी जमीनें हड़पी जा रही हैं. उन्हें देश से बाहर खदेड़ा जा रहा है. सू ची ने रखाइन में हो रहे जुल्म को कानूनी कार्रवाई बताया है. इस पर उनकी दुनिया भर में आलोचना हो रही है.
बांग्लादेश को ऐतराज
बांग्लादेश रोंहिग्या मुसलमानों को अपनाने के लिए तैयार नहीं है. परेशान लोग सीमा पार करके सुरक्षित ठिकाने की तलाश में बांग्लादेश आ रहे हैं. बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है. बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. रोहिंग्या लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं.