टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ की ये 11 बाते हैं कुछ खास

अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ फिल्म का नाम जितना अलग है, उतनी ही अलग है फिल्म। श्रीनारायण सिंह के निर्देशन में बनी ये फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल होगी या बाकी बड़ी फिल्मों की तरह होगी फ्लॉप, ये तो एक हफ्ते में साफ होगा।
टॉयलेट: एक प्रेम कथा' की ये 11 बातों से हैं खास
लेकिन अगर आप इस वीकेंड प्लान कर रहे हैं इस फिल्म को देखने का तो पहले पढ़ लें ये 11 प्वाइंट्स-

1. शौचालय जरूरत है। इसके बिना जीवन तकलीफदेह हो सकता है। निर्देशक श्रीनारायण सिंह की फिल्म देखते हुए इस बात का गहरा एहसास होता है।

2. यह मनोरंजन, सामाजिक संदेश और सरकारी प्रयासों की मिलीजुली कहानी है, जिसमें सरकारी प्रोपगंडे का बिगुल लगातार बजता रहता है, लेकिन सिरे से कोई ठोस बात नहीं उभरती।

3. फिल्म कई मौकों पर मनोरंजन की आड़ में सामाजिक विषयों के पाठ पढ़ाती नजर आती है। यह अखरता है। 

4. लेखक-निर्देशक ने टॉयलेट की समस्या को स्वच्छता के सिरे से उतना नहीं उभारा जितना महिलाओं की प्रतिष्ठा और सम्मान से जोड़ा।

5. फिल्म मथुरा के नजदीक एक गांव का जीवन दिखाती हुई केशव (अक्षय कुमार) और जया (भूमि पेडनेकर) के परस्पर आकर्षण, प्रेम और विवाह तक पहुंचती है। परंतु उतार-चढ़ाव तब शुरू होते हैं जब जया को पता चलता है कि केशव के घर में टॉयलेट नहीं है। निर्देशक ने कहानी में ससुर को ‘असुर’ बनाया है।

ये भी देखें: वीडियो: जब रेखा ने सबके सामने कर दिया था ये बड़ा कांड, देखने वालो के उड़ गये थे होश…

6. श्रीनारायण ने घर में टॉयलेट बनवाने के विचार को धर्म, अंधविश्वास और पुरातन पंथी सोच से जोड़ा है। जहां कहा जाता है कि घर के अंदर भगवान हैं, रसोई है और आंगन में तुलसी है। इस दायरे में कैसे शौच हो सकता है। 

7. कई बार लेखक-निर्देशक अपने प्रहार में अतिवादी नजर आने लगते हैं। पाठ पढ़ाती फिल्म से मनोरंजन अचानक खत्म हो जाता है।

8. निर्देशक ने शौचालय/स्वच्छता के लिए बनी सरकारी योजनाओं के सामाजिक दुरुपयोग तथा अधिकारियों के घोटाले रेखांकित किए हैं, परंतु फोकस नहीं किया।

9. फिल्म संदेश देती है कि प्रेमिका/पत्नी के लिए घर में शौचालय बनवाना ही ताजमहल बनाने के बराबर है। अक्षय और भूमि अपनी भूमिकाओं में फिट हैं। दोनों ने अच्छा अभिनय किया है।

10. फिल्म की भाषा और संवाद पर ठीक ढंग से काम नहीं हुआ। कई जगह वे खटकते हैं। फिल्म में हंस मत पगली और जुगाड़ गीत रोचक हैं।

11. श्रीनारायण सिंह की कहानी पर पहले हिस्से में पकड़ अच्छी है लेकिन दूसरा हिस्सा सरकारी प्रचार की भेंट चढ़ गया है। यहीं फिल्म कमजोर पड़ गई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button