50 सालों से जल रहा था ‘नरक का द्वार’, इसके बंद होने को लेकर वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा!

दुनिया कई खदाने हैं ऐसी ही जिसमें लगी आग सालों से जल रही है. इनमें भारत की धनबाद की कोयले की खदान हो या फिर तुर्कमेनिस्तान का मशहूर नरक का द्वार(Gateway to Hell), आग दशकों से जल रही है. यह नरक का द्वार पिछले 50 सालों से जल रहा है. ऐसी आगों पर काबू पाना असंभव होता है. यह कारण है कि दशकों बाद बाद भी इनमें आग लगातार जल रही है. पर हाल ही में नरक का द्वार सुर्खियों में आ गया है. इसको लेकर वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है कि यह बंद होने वाला है कि क्योंकि इसकी लपट और इससे निकलने वाली गैसें दोनों में भारी कमी देखने को मिली है.
चमक खो रहा है नरक का द्वार
तुर्कमेनिस्तान का यह क्रेटर, जो 1971 में सोवियत वैज्ञानिकों की एक भयानक गलती के कारण बना, अब धीरे-धीरे अपनी चमक खो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्राकृतिक गैस का प्रवाह कम होने से इसकी लपटें अब पहले की तुलना में तीन गुना कम हो गई हैं. अब आग की लपटें केवल पास से ही दिखाई देती हैं. पहले यह कई किलोमीटर दूर से नजर आता था. इसी के कारण इसे नरक का द्वार नाम दिया गया था.
एक बड़े भंडार से जुड़ा है ये
1971 में सोवियत वैज्ञानिकों ने गलती से एक भूमिगत गैस के भंडार में ड्रिलिंग की, जिसके बाद यह गड्ढा बन गया और इसे आग लगा दी गई. तब से यह क्रेटर बिना रुके जल रहा है. नरक का द्वार न केवल एक पर्यावरणीय चुनौती है, बल्कि यह तुर्कमेनिस्तान के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक बन गया है. यह क्रेटर देश की प्राकृतिक गैस की विशाल संपदा से जुड़ा है, जो दुनिया में चौथे सबसे बड़े गैस भंडार के रूप में माना जाता है.
आग कैसे लगी इस पर रहस्य
इस क्रेटर से निकलने वाली मीथेन गैस पर्यावरण के लिए हानिकारक रही है, जो ग्रीनहाउस गैस निकलने का एक बड़ा जरिया है. सोवियत यूनियन के समय इस क्रेटर की पैदाइश को छिपाने की कोशिश की गई थी, जिसके कारण इसके निर्माण का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. अब यही माना जाता है कि यह एक प्राकृतिक गैस खोज के दौरान हुई दुर्घटना का परिणाम था.
हालांकि यह क्रेटर तुर्कमेनिस्तान में राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन गया है, लेकिन तुर्कमेनिस्तान का नेतृत्व इसे बंद करने की कोशिश में हैं. इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं. क्रेटर के पास दो नए कुएं खोदे गए हैं ताकि अतिरिक्त मीथेन गैस को सुरक्षित रूप से जमा किया जा सके. इसके अलावा, क्षेत्र में बंद पड़े गैस पंपों को फिर से चालू किया गया है. इन प्रयासों से गैस का प्रवाह काफी हद तक कम हुआ है, जिसके नतीजे में आग की तीव्रता में कमी आई है. फिर भी, नरक का द्वार अभी भी वातावरण में बड़ी मात्रा में मीथेन गैस छोड़ रहा है, जो पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा है.