कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के 5 बड़े कारण रहे, पढ़ें पूरी खबर ..

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा है। वह करीब 70 सीटों पर हुई दिख रही है, जबकि कांग्रेस की सत्ता में वापसी होने वाली है। भाजपा के लिए दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में हार के बाद अब वह देश के इस हिस्से से बेदखल हो गई है। सीएम के तौर पर येदियुरप्पा के तौर पर बसवराज बोम्मई को सीएम बनाने वाली भाजपा के लिए यूं तो कई फैसले भारी पड़े हैं, लेकिन खासतौर पर 5 मुद्दों को अहम माना जा रहा है। ऐसे में कर्नाटक की यह हार भाजपा को कुछ सबक भी देती है, जिससे सीखना उसे आगे के चुनावों में जरूर लाभ देगा। आइए जानते हैं, किन वजहों से हार गई भाजपा…

भ्रष्टाचार का टैग लगाने में सफल रही कांग्रेस

देश भर में भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में जुटने वाली पार्टी के तौर पर खुद को प्रचारित करती रही है, लेकिन कर्नाटक में उलटा हुआ। यहां कांग्रेस ने करीब एक साल से उसके खिलाफ ठेकों में कमिशन का मुद्दा उठा रखा था। सरकारी ठेकों में ’40 पर्सेंट कमिशन’ वाली सरकार के तौर पर कांग्रेस प्रचार कर रही थी। बीते साल अप्रैल में एक ठेकेदार संतोष पाटिल ने आत्महत्या कर ली थी और भाजपा नेता ईश्वरप्पा पर करप्शन का आरोप लगाया था। मंत्री ईश्वरप्पा को सीआईडी जांच में क्लीन चिट दी गई थी। लेकिन बाद में कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डी. केम्पन्ना ने यह मुद्दा उठाया तो इस पर कांग्रेस ने फिर से घेरना शुरू किया। यही नहीं भाजपा विधायक एम. विरुपक्षप्पा की गिरफ्तारी के बाद यह मामला और तूल पकड़ने लगा, जब उनके बेटे को घूस लेते हुए अरेस्ट किया गया था।

सरकार बदलने का रिवाज नहीं बदल पाया

कर्नाटक में सरकारें बदलने का रिवाज रहा है, जिसे भाजपा बदल नहीं सकी। 1985 से ही हर बार सत्ता परिवर्तन होता रहा है। भाजपा को 2019 में तब सरकार मिली थी, जब एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ विधायक उसके साथ आ गए थे। लेकिन भाजपा सरकार बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। येदियुरप्पा के सत्ता से हटने के बाद पार्टी को दूसरा बड़ा चेहरा तैयार नहीं कर सकी और पीएम मोदी पर ही निर्भरता रही। इसी के चलते भाजपा को हार सामना करना पड़ा।  

आरक्षण का दांव फायदे की बजाय नुकसान कर गया

भाजपा सरकार ने चुनाव से ठीक पहले 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण को ध्रुवीकरण की आस में खत्म किया था। लेकिन यह दांव उसके लिए उलटा पड़ गया। इसकी वजह थी कि मुस्लिम तो इस फैसले के खिलाफ एकजुट होकर कांग्रेस के साथ गए, लेकिन भाजपा को हिंदू समुदायों का वह समर्थन नहीं मिला, जिसकी उसे उम्मीद थी। 

महंगाई बनी मुद्दा, ऊपर से कांग्रेस के मुफ्त वाले ऐलान

विपक्षी दल कांग्रेस और जेडीएस ने पेट्रोल, डीजल, गैस की महंगाई को मुद्दा बनाया था। इसके जरिए कांग्रेस माहौल बनाने में सफल रही। मिडिल क्लास और गरीब तबके के लोगों में भाजपा के खिलाफ माहौल बना, जिसका बड़ा हिस्सा उसे वोट देता रहा है। एक तरफ जरूरी चीजों की महंगाई और दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से मुफ्त गैस सिलेंडर देने जैसे ऐलानों ने चुनाव में बड़ा काम किया। 

लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ने से झटका

कर्नाटक में भाजपा की सफलता लिंगायत समुदाय के समर्थन पर निर्भर रही है। लेकिन चुनाव से ठीक पहले जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे नेताओं के पार्टी छोड़ने से उसे झटका लगा। दोनों नेता लिंगायत समुदाय के बड़े चेहरे माने जाते हैं। राज्य में लिंगायतों की आबादी 17 फीसदी रही है।

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