370 पर जब दुनिया नहीं दिया पाकिस्तान का साथ, तब खुद चला ये दांव

कश्मीर मुद्दे पर हर तरफ से मिल रही निराशा के बाद अब पाकिस्तान नया दांव खेलने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को अफगानिस्तान से जोड़ते हुए चेतावनी दी है कि वह पश्चिमी सीमा (अफगानिस्तान से लगी पाक की सीमा) से सेना को हटाकर पूर्वी मोर्चे पर तैनात कर सकता है. अमेरिका को डर है कि पाकिस्तान के इस कदम से तालिबान के साथ उसकी शांति वार्ता मुश्किल में पड़ सकती है. पाकिस्तान अमेरिका के इसी डर को भुनाने की कोशिश में लगा हुआ है.

अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत असद मजीद खान ने पाकिस्तान का ‘अफगानिस्तान के बदले कश्मीर’ वाला पुराना कार्ड खेला है. न्यू यॉर्क टाइम्स के साथ संपादकीय बैठक में मजीद ने खुद यह बात भी कही कि कश्मीर और अफगानिस्तान दो अलग-अलग मुद्दे हैं और वह दोनों को जोड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. 

न्यू यॉर्क टाइम्स से बातचीत में मजीद ने लिखा, पश्चिमी सीमा पर हमारी सेना की तैनाती है लेकिन अगर पूर्वी सीमा (भारत के साथ लगी सीमा) पर हालात बिगड़ते हैं तो हमें तैनाती दूसरे ढंग से करनी पड़ेगी. फिलहाल, इस्लामाबाद में हम केवल यही सोच रहे हैं कि हमारी पूर्वी सीमा पर क्या हो रहा है?

मध्य सूडान में भारी बारिश का कहर, 7 की मौत

जब-जब कश्मीर का जिक्र आता है, पाकिस्तान हर बार अफगानिस्तान कार्ड खेलने की कोशिश करता है. दरअसल, दशकों तक युद्ध की आग में जले अफगानिस्तान से अमेरिका अब हर हाल में अपनी सेना की वापसी चाहता है और इसीलिए वहां तालिबान के साथ शांति वार्ता के प्रयास कर रहा है. तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव बहुत ज्यादा है, ऐसे में शांति वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका अहम हो जाती है.

पाकिस्तान में मुशर्रफ के वक्त से ही ऐसा दांव चला जाता रहा है. इस्लामाबाद अक्सर अमेरिका को ब्लैकमेल किया करता था कि अगर वह कश्मीर पर भारत के खिलाफ उसका साथ नहीं देगा तो वह भी आतंक के खिलाफ युद्ध में उसकी कोई मदद नहीं करेगा. इस रणनीति की वजह से बुश और ओबामा प्रशासन अक्सर भारत पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों के खिलाफ आक्रामक रूख नहीं अपनाने के लिए दबाव डालते थे.

ट्रंप प्रशासन का तालिबान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों के साथ समझौता अंतिम चरण में है. वार्ता में शामिल सभी पक्ष इस्लामाबाद को कश्मीर मुद्दे से अफगानिस्तान को नहीं जोड़ने के लिए सतर्क कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान पर कोई असर नहीं पड़ रहा है.

पिछले दिनों कश्मीर मुद्दे पर चर्चा के दौरान पाकिस्तान की संसद में विपक्षी दल के नेता शहबाज शरीफ ने भी कश्मीर और अफगानिस्तान की तुलना कर दी थी जिसके बाद तालिबान ने ही पाकिस्तान को लताड़ लगाई थी. शहबाज ने संसद को संबोधित करते हुए कहा था, “यह किस तरह की डील है कि अफगान काबुल में शांति और खुशहाली से रहें लेकिन कश्मीर में खून बहने दिया जाए? यह किसी भी तरह से हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है.”

इसके बाद तालिबान ने तमाम देशों से अफगानिस्तान को ‘प्रतिस्पर्धा का मैदान’ ना बनाने की अपील करते हुए कहा था, कुछ पक्ष कश्मीर के मुद्दे को अफगानिस्तान से जोड़ रहे हैं लेकिन इससे वहां के संकट से निकलने में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि अफगानिस्तान का मुद्दा कश्मीर से किसी भी तरह से जुड़ा हुआ नहीं है. तालिबान ने अपने बयान में कहा, हमें युद्ध और संघर्ष का बहुत कड़वा अनुभव रहा है इसलिए हम कश्मीर समस्या का शांति और तार्किक तरीके से समाधान निकालने की अपील करते हैं.

अनुच्छेद -370 खत्म होने के बाद से पाकिस्तान ईरान, सऊदी अरब, यूएई, मलेशिया हर तरफ फोन घुमा चुका है लेकिन हर कोई उसे कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाने की सलाह दे रहा है.

सोमवार को फॉक्स न्यूज से बातचीत में यूएस में पाकिस्तानी राजदूत ने कहा, मैं आपको पूरा मुद्दा समझाता हूं, ये ऐसा है जैसे आप किसी सुबह उठें और आपको पता चलें कि वॉशिंगटन ने राज्य के लोगों का जिक्र किए बगैर न्यू यॉर्क को तीन हिस्सों में बांट दे. बल्कि ये सब संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए विवादित क्षेत्र में किया जा रहा है.

इसके जवाब में भारतीय राजदूत हर्ष वर्धन श्रृंगला ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें कश्मीर घाटी के बाहर भी 20 करोड़ की मुस्लिम आबादी बसती है. भारत की आबादी में 18 फीसदी मुस्लिमों की आबादी है और यहां बिना किसी धार्मिक आधार के सबको अपनी बात कहने का हक है- हालांकि भारतीय मुसलमानों के भीतर आईएसआईएस या अलकायदा से कोई सहानुभूति नहीं है. कश्मीर में धीरे-धीरे हालात पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगे और कुछ वक्त बाद वहां चुनाव भी संपन्न कराए जाएंगे. उनका अपना मुख्यमंत्री होगा. हम सुनिश्चित करेंगे कि वहां विकास की लहर आए. 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button