2 मार्च को जरूर पढ़े अंगारकी संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा
आप जानते ही होंगे हर माह में दो चतुर्थी आती हैं और दोनों ही चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती हैं। ऐसे में इस समय फाल्गुन का महीना चल रहा है और इस महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी कल यानी 2 मार्च को मनाई जाने वाली है। मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। कल आने वाली चतुर्थी को अंगारकी संकष्टी चतुर्थी भी कह सकते हैं। इस दिन गणपति के द्विजप्रिय रूप की आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि, ‘विघ्नहर्ता द्विजप्रिय गणेश के चार मस्तक और चार भुजाएं हैं।’ आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस चतुर्थी की कथा और पूजन के शुभ मुहूर्त।
जानें शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ : 2 मार्च 2021 मंगलवार सुबह 05ः46 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त : 3 मार्च 2021 बुधवार रात 02ः59 बजे
चन्द्रोदय का समय : 09ः41 बजे
व्रत कथा – एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए। इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी।
मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे कर विजयी हो रही थीं। खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया।
बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर उन्होंने बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी। तब माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वे एक उपाय बता सकती हैं जिससे श्राप मुक्ति हो सकती है। माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन इस जगह पर कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना।
बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया। गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले।
माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गयी थीं। जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। ये जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश वापस लौट आयीं। इस तरह संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले की गणपति सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।