1954 से शुरू हुआ था दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव; 1971 तक कांग्रेस के दो दिग्गजों का रहा दबदबा

डूसू चुनाव का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। 1954 से शुरू हुए इन चुनावों में 1971 तक कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का दबदबा रहा। बाद में एनएसयूआई के गठन से छात्र राजनीति का रंग बदला।

DUSU Elections History: डूसू चुनावों का इतिहास जितना लंबा है, उतना ही दिलचस्प भी रहा है। आज ये चुनाव राष्ट्रीय स्तर की छात्र राजनीति से जुड़कर चर्चाओं में रहते हैं, लेकिन शुरुआती दौर में इसका स्वरूप कुछ और ही था। वर्ष 1954 में डूसू चुनाव की शुरुआत हुई। तब न तो किसी बड़े दल से जुड़ा छात्र संगठन सक्रिय था और न ही कांग्रेस का आधिकारिक छात्र मोर्चा मौजूद था।

यही कारण था कि शुरुआती 18 चुनाव में दिल्ली कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के गुट ही इन चुनावों की असली ताकत बने रहे। दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश और कांग्रेस नेता एचकेएल भगत इस दौर में छात्र राजनीति के सबसे प्रभावशाली संरक्षक माने जाते थे।

कांग्रेस गुटबाजी का आईना बने डूसू चुनाव
दोनों नेता अपने-अपने समर्थक छात्र नेताओं को चुनाव मैदान में उतारते थे। लिहाजा उनके समर्थक छात्रों के बीच चुनाव में टक्कर होती थी। नतीजतन, डूसू चुनाव छात्रों के लिए राजनीति में प्रवेश का बड़ा मंच तो बने ही, साथ ही यह दिल्ली की कांग्रेस राजनीति में गुटबाजी का आईना भी साबित हुए।

1971 में बनी एनएसयूआई, 1972 में उतरी डूसू चुनाव में
कांग्रेस ने 1971 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ का गठन किया, लेकिन उसने डूसू चुनाव में उतरने की शुरुआत 1972 से की। इसका मतलब है कि लगभग 18 साल तक कांग्रेस का कोई आधिकारिक छात्र संगठन मौजूद नहीं था। डूसू चुनाव में चौधरी ब्रह्म प्रकाश और एचकेएल भगत जैसे नेताओं के समर्थक छात्रों का बोलबाला रहा। ये छात्र नेता बाद में दिल्ली की राजनीति में बड़े पदों पर पहुंचे। कभी चौधरी ब्रह्म प्रकाश गुट के समर्थक छात्र नेता अध्यक्ष पद जीतते, तो कभी भगत गुट के। ऐसे में डूसू के कई अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी दिल्ली की मुख्यधारा की राजनीति में चमकते सितारे बने।

डूसू के जरिए राजनीति में आगे बढ़े
उस दौर में डूसू के जरिए राजनीति में कदम रखने वाले कई नाम आगे चलकर बड़े पदों तक पहुंचे। सबसे प्रमुख नाम सुभाष चोपड़ा का है। चोपड़ा न केवल दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष बने, बल्कि दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे। कई बार विधायक चुने गए और लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। इसी तरह हरचरण सिंह जोश और वीरेश प्रताप चौधरी जैसे नेता भी डूसू के जरिए राजनीति में सक्रिय हुए और प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई। इस तरह डूसू चुनावों ने यह साबित किया कि छात्र राजनीति केवल विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी हैं।

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