16 या 15 नवंबर कब है उत्पन्ना एकादशी? 

उत्पन्ना एकादशी हर साल साधक भक्ति भाव से मनाते हैं। यह भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। कहते हैं कि इस दिन पूजा-पाठ करने से जीवन में शुभता आती है, तो आइए इस व्रत से जुड़ी सभी बातें जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।

उत्पन्ना एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह वह पावन तिथि है जब देवी एकादशी का जन्म हुआ था, जिन्होंने भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न होकर मूर नामक दैत्य का वध किया था। ऐसा कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पिछले और वर्तमान जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस साल उत्पन्ना एकादशी कब मनाई जाएगी? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं।

उत्पन्ना एकादशी 15 या 16 नवंबर कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, 15 नवंबर को देर रात 12 बजकर 49 मिनट पर अगहन महीने (मार्गशीर्ष) के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 37 मिनट पर होगा। हिंदू धर्म में उदया तिथि मान्य है। इसलिए 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाएगी। वहीं, इसका पारण 16 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 08 मिनट के बीच किया जाएगा।

उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि
एकादशी से एक दिन पहले दशमी तिथि की रात में सात्विक भोजन और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े धारण करें।

भगवान विष्णु के समक्ष हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें।

भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।

उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, पीले फूल, फल और तुलसी दल अर्पित करें।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

इसके बाद एकादशी की व्रत कथा पढ़ें और अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।

इस दिन केवल फलाहार ही करना चाहिए।

इस दिन चावल का सेवन वर्जित माना गया है।

अगर हो पाए, तो रात के समय भगवान का भजन-कीर्तन करें।

अगले दिन, यानी 16 नवंबर को द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें।

इसके बाद व्रत का पारण करें।

पारण हमेशा हरि वासर यानी द्वादशी तिथि को करना चाहिए।

पूजा मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वन्दे विष्णुम् भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

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