150 कमरे, 2000 नौकर, गेट पर हाथी, गार्डन में होती थीं इंपोर्टेड कारें…

झारखंड के गौरवशाली इतिहास की कई ऐतिहासिक इमारतें गाथा गाती हैं. ऐसे ही हजारीबाग के इतिहास को यहां का पदमा किला दर्शाता है. हजारीबाग से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पदमा किला रामगढ़ राजा राम नारायण सिंह के वंशजों का ऐतिहासिक किला है. यहां पर्यटक दूर-दूर से घूमने के लिए पहुंचते हैं. लेकिन, कभी राजवाड़े के ठाठ और रौनक से लैस ये किला आज खंडहर में तब्दील होते जा रहा है.

इंपोर्टेड गाड़ियों का रहता था काफिला
रामगढ़ राज की स्थापना बाघदेव सिंह ने 14वीं शताब्दी में की थी. इसकी पहली राजधानी उर्दा थी, जिसके बाद राजधानी को 1642 में बादाम ले जाया गया. फिर 1670 में रामगढ़, 1772 में इचाक और 1873 में इसकी राजधानी इचाक से बदलकर पदमा कर दी गई थी. उसी समय इस किले को तैयार किया गया था. स्थानीय लोग बताते हैं कि इस किले को तैयार करने में 30 साल का समय लगा था.

ऐसे थे ठाठ-बाट
1873 से लेकर 1970 तक इस किले में ठाठ देखने लायक थी. महल के बाहर बड़ा मैदान हुआ करता था, जहां राजा साहब की इंपोर्टेड गाड़ियों का काफिला रहता था. गेट पर हाथी आगंतुक का स्वागत करते थे. उस जमाने में महल के लिए पावर हाउस इंग्लैंड से मंगवाया गया था, जहां से पूरे महल में बिजली सप्लाई की जाती थी.

रोजाना लगती थी फिल्म
इतिहासकार विजय सिंह बताते हैं कि ब्रह्मदेव नारायण सिंह ने इस किला का निर्माण किया था. उस समय इस महल की रौनक देखने लायक थी, इस महल में लगभग 150 कमरे थे. महल में काम करने के लिए साल भर 2000 लोग रहते थे. महल में उस समय सिनेमा थिएटर बनाया गया था, जहां रोजाना शाम में फिल्म दिखाई जाती थी. स्थानीय लोग यहां आकर फिल्म देखा करते थे.

प्री वेडिंग की पहली पसंद
आज पदमा किला प्री वेडिंग की पहली पसंद बन चुकी है. लोग यहां अपनी प्री वेडिंग शूट करने के लिए पहुंचते हैं. साथ ही कई लोग घूमने के लिए इस महल में आते हैं, लेकिन ये महल धीरे-धीरे अब खंडहर का रूप लेते जा रहा है. कामाख्या नारायण सिंह रामगढ़ राज के आखिरी राजा हुए. वहीं, अब सौरभ नारायण सिंह रामगढ़ राज के उत्तराधिकारी हैं, लेकिन उन्होंने भी किले को संजोने की कोशिश नहीं की. इस किले का कुछ क्षेत्र झारखंड पुलिस को दिया गया है, जहां ट्रेनिंग कैंप चलता है. इसके अलावा भी राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण इस परिसर में बनाया गया है. पूरी जमीन खाली पड़ी है.

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