बहुचर्चित समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में 12 साल बाद आज पंचकूला की एनआईए कोर्ट फैसला सुना सकती है। इस ब्लास्ट में 68 लोगों की जान चली गई थी और 19 कब्रों को आज तक पहचान का इंतजार है। मामले के आरोपियों में से एक की हत्या हो गई थी और तीन को पीओ घोषित कर दिया गया था। अब आरोपी हैं- स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी
यह था मामला
भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में 18 फरवरी 2007 की रात को बम धमाका हुआ था। इसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी। 12 लोग घायल हो गए थे। ट्रेन दिल्ली से लाहौर जा रही थी। धमाके में जान गंवाने वालों में अधिकतर पाकिस्तानी नागरिक थे। मृतकों में 16 बच्चों समेत चार रेलवे कर्मी भी शामिल थे। विस्फोट हरियाणा के पानीपत जिले में चांदनी बाग थाने के अंतर्गत सिवाह गांव के दीवाना स्टेशन के नजदीक हुआ था।
20 फरवरी 2017 को एसआईटी का गठन
20 फरवरी 2007 को इस मामले की जांच के लिए हरियाणा पुलिस की ओर से एसआईटी का गठन किया गया था। प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए। ऐसा कहा गया कि ये दोनों ट्रेन में दिल्ली से सवार हुए थे और रास्ते में कहीं उतर गए। इसके बाद धमाका हुआ। पुलिस को घटनास्थल से दो ऐसे सूटकेस मिले, जो फट नहीं पाए थे। पुलिस ने संदिग्धों के बारे में जानकारी देने वालों को एक लाख रुपये का नकद इनाम देने की भी घोषणा की थी।
सूटकेस के कवर के सहारे टीम ने किया था खुलासा
15 मार्च, 2007 को हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया था। यह मामले में की गई पहली गिरफ्तारी थी। पुलिस इन तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंच पाई थी। ये कवर इंदौर के एक बाजार से घटना के चंद दिनों पहले ही खरीदा गया था। बाद में इसी तर्ज पर हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और मालेगांव में भी धमाके हुए। इन सभी मामलों के तार आपस में जुड़े हुए बताए गए। जांच में हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र के एटीएस को एक हिंदू कट्टरपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ के शामिल होने के संकेत मिले थे।
एनआईए ने की जांच
26 जुलाई 2010 को मामला एनआईए को सौंपा दिया गया। एनआईए ने 26 जून 2011 को पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था। आरोपियों पर आईपीसी की धारा 120 बी साजिश रचने के साथ 302 यानी हत्या, 307 हत्या की कोशिश करना और विस्फोटक पदार्थ, रेलवे को हुए नुकसान को लेकर कई धाराएं लगाई गई हैं।
जांच एजेंसी का कहना है कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए आतंकवादी हमलों से दुखी थे और इसी का बदला बम से लेना चाहते थे। बाद में एनआईए ने पंचकूला की विशेष अदालत के सामने एक अतिरिक्त चार्जशीट दाखिल की थी। 24 फरवरी 2014 से इस मामले में सुनवाई जारी है।
224 गवाहों के दर्ज हुए थे बयान
बचाव पक्ष के वकील ने बताया कि 224 गवाहों के बयान अभियोजन पक्ष की ओर से दर्ज हुए थे। इस मामले में बचाव पक्ष की ओर से कोई गवाह पेश नहीं हुआ है। इसमें कुल 302 गवाह थे। इनमें चार पाकिस्तानी नागरिक थे। कोर्ट की ओर से उन्हें लगातार समन भेजा गया। इसमें एक भी गवाह पेश नहीं हुआ इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाया था।
असीमानंद को मिली थी जमानत
अगस्त 2014 में केस में आरोपी स्वामी असीमानंद को जमानत मिल गई। कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई थी। उन्हें सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ्तार किया था। उन पर वर्ष 2006 से 2008 के बीच भारत में कई जगहों पर हुए बम धमाकों को अंजाम देने से संबंधित होने का आरोप था। असीमानंद के खिलाफ मुकदमा उनके इकबालिया बयान के आधार पर बना था लेकिन बाद में वो ये कहते हुए अपने बयान से मुकर गए थे कि उन्होंने वो बयान टॉर्चर की वजह से दिया था।
कागजों में रह गई लालू द्वारा दी गई ग्रांट
19 फरवरी 2007 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव पानीपत आये और घटनास्थल का निरीक्षण किया। लालू ने इस घटना को आतंकी हमला करार दिया था। उन्होंने ट्रेन में सवार भारतीय व पाकिस्तानी नागरिकों की जान बचाने के लिए गांव सिवाह के ग्रामीणों की तारीफ की थी। साथ ही गांव को दस लाख रुपये की ग्रांट विकास कार्यों के लिए व घटनास्थल के पास स्थित तालाब में पार्क बनाने की घोषणा की थी, लेकिन यह घोषणा आज तक कागजातों में ही चल रही है। यूपीए सरकार वन, टू व मोदी सरकार ने इन घोषणाओं पर कोई गौर नहीं की।