114 जवानों के साथ 1000 चीनी सैनिकों से लड़े थे ये, खून से लथपथ हो भी डटे रहे
सुमेरपुर(राजस्थान).चीन के साथ 1962 में हुए युद्ध में भारत मां पर जान न्योछावर करने वाले मेजर शैतानसिंह भाटी की प्रतिमा का अनावरण एवं जयंती समारोह का आयोजन आज शहर में किया गया। समारोह में शहीद शैतानसिंह के पुत्र नरपतसिंह भाटी मुख्य अतिथि रहे एवं अध्यक्षता सेना के रिटायर ब्रिगेडियर करण सिंह श्री सेला ने की। 37 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए शहीद हो गए थे मेजर शैतानसिंह…
– साल 1962 को भारतीय सेना के लिटमस टेस्ट के तौर पर याद किया जाता था। भारत और चीन की सेनाएं आपस में भिड़ पड़ी थीं। भारतीय सेना न्यूनतम संसाधनों के बावजूद चीन की सेना से लड़ती रही। इस क्रम में भारत ने अपने कई जांबाज सैनिक और अफसर भी खोए। इनमें से मेजर शैतानसिंह भी एक ऐसे ही शख्स का नाम है। वे साल 1962 में महज 37 वर्ष के थे और देश पर कुर्बान हो गए थे। उनका जन्म जोधपुर जिले के बाणासर गांव में हुआ था।
मात्र 114 भारतीयों के सामने नहीं टिक सके थे 1000 चीनी सैनिक
– 1962 की भारत-चीन जंग में अपने उल्लेखनीय नेतृत्व की वजह से मेजर शैतानसिंह को मरने के बाद परमवीर चक्र से नवाजा गया।
– 1962 की जंग में 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की सी कंपनी ने रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया, जिसकी अगुआई शैतान सिंह कर रहे थे।
– पहली खेप में 350 चीनी सैनिकों ने और दूसरी बार 400 सैनिकों ने हमला बोला, लेकिन मेजर शैतानसिंह की अगुआई में भारतीय सेना ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया।
– वे गोलियों से घायल हो गए थे। इसके बावजूद वे एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे थे।
– मेजर शैतानसिंह की सूझबूझ और साहसिक नेतृत्व की वजह से इस मोर्चे पर भारतीय सेना ने 1000 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया।
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मेजर शैतानसिंह की वीरता को देखते हुए गीतकार प्रदीप ने लिखा था गीत
मेजर शैतानसिंह एवं उनके साथियों की वीरता से प्रभावित होकर गीतकार प्रदीप ने उन पर गीत लिखा था। जिसे लता मंगेशकर ने गाकर उस गीत को अमर कर दिया था। उन्होंने थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूकें उठाके दस-दस को एक ने मारा। उनकी जरा याद करो कुर्बानी।