11 माह बाद सामने आईं मारिया मचाडो, क्यों देश छोड़ने पर हुईं मजबूर

वेनेजुएला की विपक्षी नेता और नोबेल शांति पुरस्कार की विजेता मारिया कोरीना मचाडो 11 महीने बाद ओस्लो में सार्वजनिक तौर पर दिखीं, जहां उनकी बेटी ने उनकी ओर से नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकार किया। जनवरी 2024 में विरोध प्रदर्शन के दौरान हिरासत और बढ़ते खतरे के कारण वह छिपकर रह रही थीं। समर्थकों ने ‘फ्रीडम’ के नारे लगाए।
वेनेजुएला की प्रमुख विपक्षी नेता मारिया कोरीना मचाडो करीब 11 महीने बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से दिखाई दीं। वह नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में एक होटल की बालकनी पर नजर आईं, जहां उनकी बेटी ने उनकी ओर से नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकार किया। मचाडो होटल की बालकनी पर समर्थकों को हाथ हिलाकर अभिवादन करती दिखीं। इस दौरान बाहर लोग ‘फ्रीडम, फ्रीडम’ और ‘धन्यवाद’ के नारे लगा रहे थे। बाद में वह होटल से बाहर आकर समर्थकों से मिलीं, जहां उनके साथ परिवार और उनके करीबी सहयोगी भी थे।
क्यों छिपी हुई थी मचाडो?
बता दें कि जनवरी 2024 में कराकास में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें थोड़ी देर के लिए हिरासत में लिया गया था। इसके बाद उनकी सुरक्षा को खतरा होने के कारण वे छिपकर रह रही थीं। उनकी उम्मीद थी कि वे खुद पुरस्कार लेने पहुंच पाएंगी, लेकिन वे समय पर नहीं पहुंच सकीं। उन्होंने एक फोन कॉल में कहा कि कई लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर उनकी यात्रा को संभव बनाने की कोशिश की। उनकी बेटी एना कोरीना सोसा ने पुरस्कार लेते हुए कहा कि मेरी मां एक आजाद वेनेजुएला में जीना चाहती हैं और कभी हार नहीं मानेंगी।
माचाडो ने बनाई थी ये योजना
माचाडो ने पिछले साल मादुरो को चुनौती देने की योजना बनाई थी, लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने से रोका गया। इसके कारण उन्होंने सेवानिवृत्त कूटनीतिज्ञ एडमंडो गोंजालेज का समर्थन किया। चुनाव से पहले और बाद में कई लोगों ने माचाडो का समर्थन इसलिए किया क्योंकि उन्होंने देश छोड़कर निर्वासन नहीं लिया।
वेनेजुएला के लोगों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं
वहीं माचाडो के विदेश जाने को लेकर वेनेजुएला में लोगों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। कैराकस की एक कर्मचारी जोसफिना पाज ने कहा कि अगर उन्होंने देश छोड़ा है, तो ठीक है। इस महिला ने लोकतंत्र के लिए कई बलिदान दिए हैं। अब उन्हें अपने परिवार और बच्चों के पास जाना चाहिए और विदेश से संघर्ष जारी रखना चाहिए। वहीं, दुकानदार जोसे हर्टाडो ने उन्हें देशद्रोही कहा, क्योंकि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वेनेजुएला नीति का समर्थन करती हैं।
नोबेल समिति ने क्या कहा?
वहीं नोबेल समिति के प्रमुख ने कहा कि मचाडो ने बहुत खतरनाक हालात के बावजूद ओस्लो आने की पूरी कोशिश की और वे सुरक्षित हैं। गौरतलब है कि वेनेजुएला लंबे समय से राजनीतिक संकट और दमन का सामना कर रहा है। मचाडो ने पिछले साल विपक्षी प्राइमरी जीती थी और राष्ट्रपति चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन मादुरो सरकार ने उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया। उनकी जगह विपक्ष ने एडमुडो गोंजालेज को उतारा, जिन्हें बाद में गिरफ्तारी वारंट के कारण स्पेन में शरण लेनी पड़ी। चुनाव से पहले और बाद में दमन, गिरफ्तारियों और मानवाधिकार उल्लंघनों की कई शिकायतें हुईं।
पुरस्कार समारोह में लैटिन अमेरिकी नेताओं की मौजूदगी
कार्यक्रम में अर्जेंटीना, इक्वाडोर, पनामा और पराग्वे के राष्ट्रपति भी मचाडो के समर्थन में पहुंचे। नोबेल समिति ने मचाडो को ‘असाधारण साहस की मिसाल’ बताया और कहा कि वेनेजुएला “क्रूर निरंकुश शासन” में बदल चुका है।
मचाडो की बेटी ने बढ़कर सुनाया उनका संदेश
उनके भाषण को उनकी बेटी ने पढ़कर सुनाया। इसमें कहा गया कि यह सम्मान पूरे वेनेजुएला के लोगों का है, और वे जल्द ही अपने परिवार और देशवासियों से मिलने के लिए उत्सुक हैं। संदेश में यह कहा कि लोकतंत्र पाने के लिए हमें स्वतंत्रता के लिए लड़ने की हिम्मत रखनी होगी। वहीं नोबेल समिति ने वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो से कहा कि जनता का फैसला मानिए और पद छोड़ दीजिए।





