गंभीर होकर एम्स पहुंच रहे सफेद दाग के 10 फीसदी मरीज

सफेद दाग (विटिलिगो) के 10 फीसदी मरीज गंभीर होकर एम्स में इलाज करवाने पहुंचते हैं। रोग को लेकर फैली भ्रांतियां के कारण रोगी विशेषज्ञ की जगह दूसरे जगह इलाज करवाते हैं। वे रोगी को गलत दवा व चिकित्सा देते हैं जिससे त्वचा जल तक जाती है। जबकि इस रोग का इलाज है। इस रोग के प्रति लोगों में जागरूकता के लिए त्वचा रोग विभाग के डॉक्टरों ने विटिलिगो फाउंडेशन ऑफ इंडिया का गठन किया है।

एम्स के त्वचा रोग विभाग की डॉक्टर कनिका साहनी ने कहा कि इस रोग में शरीर पर सफेद दाग बन जाते हैं। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इसमें त्वचा पर रंग बनाने वाले सेल पर असर होता है जिस कारण त्वचा के हिस्से पर दाग बन जाते हैं। एम्स में आए मरीजों के विश्लेषण के दौरान पता चला कि करीब 10 फीसदी मरीज गलत दवा लेकर आते हैं। इस कारण समस्या गंभीर हो जाती हैं। इसके अलावा 90 फीसदी ऐसे लोग होते हैं जो रोग होने पर सफेद रंग का खाना छोड़ देते हैं। दूध, खट्टा व अन्य न खाने के कारण शरीर में पोषण की कमी हो जाती है। वहीं 50 फीसदी के साथ लोग भेदभाव करते हैं। उन्हें नौकरी, स्कूल व दूसरे जगहों पर नहीं आने देते। जबकि यह रोग किसी के छूने से नहीं फैलता। इस रोग का इलाज है। इसमें दवा के अलावा फोटो थेरेपी, सर्जरी सहित दूसरे इलाज करना पड़ा है। इसमें मरीज ठीक भी हो सकता है।

एम्स में हुआ अध्ययन
यह रोग दो साल तक के बच्चे में पाया गया है। एम्स ने बच्चों पर क्या असर होता है। इस पर शोध किया। इसके अलावा शरीर पर कोई दाग बढ़ रहा होता है तो उसपर रंग कण को डाल देते हैं। इससे रोग का बढ़ना रुक जाता है। कई बाद ठीक भी हो जाता है। इसके अलावा स्टेम सेल को लेकर भी एम्स में शोध हुआ। साथ ही लैब में इन सेल को बनाया गया। 100 मरीज पर ट्रायल हुआ है।

महिलाएं इलाज के लिए आती हैं आगे
सफेद दाग की समस्या महिला व पुरुष में बराबर होती है। लेकिन इस समस्या के कारण महिलाएं इलाज के लिए ज्यादा आगे आती है। ऐसा देखा गया है कि दाग के कारण शादी व दूसरे काम में दिक्कत आती हैं।

नीति में होना चाहिए बदलाव
फाउंडेशन से जुड़े डॉक्टरों ने कहा कि सफेद दाग के इलाज के लिए इंश्योरेंस की सुविधा देनी चाहिए। साथ ही इसे लेकर नियमों में सुधार होना चाहिए। सफेद दाग के देश में लाखों मरीज हैं। सरकार यदि इसे लेकर जागरूकता फैलती है। मरीजों को बेहतर सुविधा मिल सकेगी। इस रोग को लेकर दुनियाभर में शोध चल रहा है। उम्मीद की जा रही है कि अगले दस साल में काफी बदलाव देखने को मिलेगा।

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