गोंडा के जिला महिला अस्पताल में पिछले 47 दिनों में 10 नवजात की मौत

जिला महिला अस्पताल के सिक न्यू बार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में नवजात के मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा है। 21 नवंबर से सात जनवरी के बीच एसएनसीयू में दस बच्चों की मौत हो गई है। विशेषज्ञ मौतों का कारण सांस लेने में दिक्कत व कम वजन को बता रहे हैं। सवाल यह है कि कारण जानने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग प्रभावी कदम क्यों नहीं उठा रहा है। हर तीसरे दिन नवजात की मौत हो रही है।
सिक न्यू बार्न केयर यूनिट में प्रसव के बाद गंभीर बीमारी से ग्रस्त बच्चों को भर्ती किया जाता है। 21 नवंबर से अब तक यहां जिला महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले 88 व बाहर सरकारी व प्राइवेट अस्पताल में जन्म लेने वाले 53 शिशुओं को भर्ती किया गया। महिला अस्पताल के चार व बाहर से आए छह नवजात की मौत हुई है। प्रसव में देरी से नवजात के स्वास्थ्य पर संकट पैदा होता है। इस पर नियंत्रण को लेकर गंभीरता नहीं है। यह हाल तब है जब स्वास्थ्य विभाग कई कार्यक्रम चला रहा है। टीकाकरण से लेकर गर्भवती की नियमित जांच का दावा किया जाता है। बावजूद इसके स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा है।
गर्भ से ही शिशु की शुरू करें देखभाल
जिला महिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ व एसएनसीयू प्रभारी डा. राम लखन ने कहा कि सिक न्यू बार्न केयर यूनिट में कम वजन, सांस लेने में दिक्कत से शिशुओं की मौत हुई है। शिशु की आयु की शुरुआत गर्भ ठहरने से हो जाती है। इसलिए उसकी देखभाल गर्भावस्था से शुरू कर देना चाहिए। प्रसवकाल लंबा होने पर नवजात को दिक्कत होती है। प्रसव के बाद शिशु को ठंड व संक्रमण से बचाएं। शिशु को केवल मां का दूध पिलाएं।
अक्टूबर में हुई थी 27 बच्चों की मौत
जिला महिला अस्पताल के सिक न्यू बार्न केयर यूनिट में अक्टूबर में भी 27 शिशुओं की मौत हुई थी। एक माह में इतनी मौतों ने व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया था, लेकिन अभी भी सुधार नहीं दिख रहा है।