हीरो सिर्फ हैंडसम हो ये किसी किताब में नहीं लिखा: नवाजुद्दीन
सामान्य कद काठी और काले रंग के साथ बॉलीवुड में अपने अभिनय से बादशाहत कायम करने वाले अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि बॉलीवुड में अब हीरो की परिभाषा बदल गई है। देखने में सुन्दर और सिक्स पैक्स वाले ही अब हीरो की श्रेणी में नहीं हैं, बल्कि बेहतरीन अभिनय करने वाले भी मुख्य भूमिकाएं निभा रहे हैं और फिल्में चल रही हैं। नवाज ने कहा कि हीरो का मतलब बचाने वाला होता है वो कोई भी हो सकता है। ये किसी किताब में नहीं लिखा हीरो सिर्फ सुन्दर और हीरोइन के साथ ठुमके लगाने वाला होना चाहिए।
नवाजुद्दीन अपनी आने वाली फिल्म ‘बाबू मोशाय बंदूकबाज’ के प्रमोशन के लिए फिल्म की हीरोइन बिदिता बाग, श्रद्धा दास और निर्माता अश्मित कुंदर के साथ लखनऊ में थे। फिल्म का निर्देशन कुशाल नन्दी ने किया है। फिल्म 25 अगस्त को रिलीज हो रही है।
गांव वालों के हीरो बन गए नवाजुद्दीन
अभिनेता नवाजुद्दीन का मानना है कि आदमी कितना बड़ा क्यों न हो जाए उसे अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए। ये बात नवाज पर चरितार्थ भी होती है। बाबू मोशाय बंदूकबाज की शूटिंग नवाजुद्दीन ने सुलतानपुर रोड के करीब स्थित खुर्दही के राजा खेड़ा गांव में थी। कोई भी कलाकार हो शूटिंग निपटाने के बाद शायद ही वहां के लोगों से मिलने जाता हो लेकिन नवाजुद्दीन औरों से अलग हैं। वो शूटिंग के बाद प्रमोशन के लिए जब लखनऊ आए तो उसी गांव में फिर गये। वहां के लोगों के साथ वक्त गुजारा और खूब बातें कीं। नवाज की इस अदा ने गांव वालों को अपना प्रशंसक बना लिया।
रंगभेद हमारे समाज में फैला
अभिनेता नवाजुद्दीन का रंग काला है लेकिन वो कलाकार जबरदस्त हैं। इसके बावजूद हाल ही में उनको भी रंगभेद का शिकार होना पड़ा था। इस मामले ने काफी तूल भी पकड़ा था। लखनऊ में भी उन्होंने इस विषय पर बात करते हुए कि भारत की मानसिकता में ही रंगभेद शामिल है। शादी के विज्ञापन को ही देख लीजिए साफ लिखा होता है कि सुन्दर, सुशील लम्बी वधू या वर चाहिए। इसी तरह बॉलीवुड में भी ऐसे तमाम लोग हैं जो इन सब बातों को मानते हैं।
बॉलीवुड को सेंसर बोर्ड की जरूरत नहीं
फिल्म के निर्माता और अश्मित कुंदर और नवाजुद्दीन ने सेंसर बोर्ड की कैंची पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड का काम सिर्फ सर्टिफिकेट देना है। उसे फिल्मों पर कैंची चलाने का हक नहीं है। फिल्मकार बड़ी मेहनत के साथ नए आइडिया उठाते हैं और उसमें से कुछ भी काटने को कह दिया जाता है, इससे फिल्म की स्क्रिप्ट मर जाती है। हमारे दर्शक समझदार हैं, वो जानते हैं कि कौन सी फिल्म देखनी है, कौन सी नहीं। इसलिए बॉलीवुड को ऐसे सेंसर बोर्ड की जरूरत नहीं जो सर्टिफिकेट देने के साथ फिल्मों में सीन काटने को कहे