हवाई जहाज में हमेशा बाईं ओर से ही क्यों होती है बोर्डिंग? 

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि आप किसी भी एयरलाइन से उड़ान भरें, यात्री हमेशा प्लेन में बाईं ओर से ही एंट्री क्यों करते हैं? दरअसल, यह एक मामूली-सी बात है जिस पर ज्यादातर लोग कभी ध्यान भी नहीं देते। आइए, इस आर्टिकल में आपको बताते हैं इसके पीछे छिपे कुछ ऐसे दिलचस्प कारण जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जब भी आप किसी एयरप्लेन में चढ़ते हैं, तो सीढ़ियां हमेशा बाईं तरफ ही क्यों दी गई होती है? बता दें, चाहे विमान किसी भी कंपनी का हो या आप किसी भी देश में यात्रा कर रहे हों, ये नियम लगभग हर जगह एक जैसा है।

ऐसे में, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर बाईं ओर ही क्यों, दाईं ओर क्यों नहीं? असल में, इसके पीछे कुछ ऐसी वजहें हैं जो एविएशन हिस्ट्री और सेफ्टी दोनों से जुड़ी हैं। आइए जानते हैं इन 5 दिलचस्प कारणों के बारे में।

संचालन होता है आसान

एयरपोर्ट पर विमान के इर्द-गिर्द बहुत-सी गतिविधियां चलती रहती हैं- जैसे ईंधन भरना, सामान लोड करना, सफाई और तकनीकी जांच। अगर यात्रियों के चढ़ने की दिशा हर बार बदल दी जाए, तो इन सभी प्रक्रियाओं में गड़बड़ी हो सकती है।

इसीलिए यात्रियों के लिए एक तय दिशा, यानी बाईं ओर से एंट्री रखी गई है, ताकि ग्राउंड स्टाफ को हमेशा पता रहे कि किस ओर से यात्री आएंगे और किस ओर से बाकी काम होंगे। इससे समय की बचत होती है और काम तेजी और व्यवस्था से चलता है।

सुरक्षा से जुड़ा मामला

विमान के ईंधन टैंक और कुछ तकनीकी उपकरण आमतौर पर दाईं ओर लगे होते हैं। ऐसे में, यात्रियों को उसी दिशा से चढ़ने देना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि ईंधन भरने या उपकरणों की जांच के समय किसी भी चूक से दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है। बाईं ओर से यात्रियों को बोर्ड कराने से उन्हें इन संवेदनशील हिस्सों से दूर रखा जाता है और सुरक्षा का स्तर बढ़ जाता है।

कन्फ्यूजन से बचाव

एक बार जब विमानन कंपनियों ने बाईं ओर से चढ़ने का तरीका तय कर लिया, तो यही वैश्विक मानक बन गया। अगर इसे बदला जाए, तो न केवल यात्रियों में भ्रम होगा, बल्कि हवाई अड्डों और कर्मचारियों के लिए भी असुविधा होगी। इसलिए वर्षों से चली आ रही यह परंपरा अब मानक प्रक्रिया बन चुकी है, जो दुनिया के लगभग हर हवाई अड्डे पर लागू है।

समुद्री परंपरा से मिली प्रेरणा

हवाई यात्रा के शुरुआती दौर में पायलेट्स और इंजीनियरों ने बहुत-सी बातें जहाजों (Ships) से अपनाईं। समुद्री परंपरा के अनुसार यात्री जहाज के बाएं हिस्से (Port Side) से चढ़ते थे। जब विमानन का दौर शुरू हुआ, तो यही तरीका हवाई जहाजों में भी अपनाया गया। इससे पायलट और चालक दल को एक समान दिशा की समझ बनी रही- चाहे वे समुद्र में हों या आसमान में।

कंट्रोल और कॉर्डिनेशन बना आसान

ज्यादातर विमानों में पायलट की सीट बाईं ओर होती है। पुराने समय में जब तकनीक इतनी मॉडर्न नहीं थी, तो पायलट खुद यात्रियों की बोर्डिंग पर नजर रखते थे। बाईं ओर से बोर्डिंग होने पर उन्हें सीधा दृश्य मिलता था, जिससे कॉर्डिनेशन आसान होता था। यही प्रथा आज भी जारी है, भले ही अब तकनीक और सुरक्षा उपायों ने उड़ानों को और उन्नत बना दिया हो।

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