हर 10 में से 1 बच्चा हफ्ते में एक बार भी बाहर नहीं खेलता…

एक सर्वे के अनुसार, बच्चों का बाहर खेलना कम हो रहा है, जिसका मुख्य कारण मोबाइल का बढ़ता इसतेमाल और माता-पिता का सुरक्षा को लेकर डर है। यह बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक है। बाहर कम समय बिताने के कारण बच्चों के आत्म विश्वास पर भी असर पड़ता है।

दुनियाभर में बच्चों का बचपन अब घर की चार दीवारों और मोबाइल स्क्रीन के बीच सिमटता जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन हेल्थ सीएस मॉट चिल्ड्रन हॉस्पिटल के हालिया सर्वे के मुताबिक, हर 10 में से 1 बच्चा हफ्ते में एक बार भी बाहर खेलने नहीं जाता।

यह आंकड़ा न केवल बच्चों की दिनचर्या पर सवाल उठाता है, बल्कि आने वाले समय में उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी चिंता की घंटी बजाता है। आइए जानें इस बारे में।

मोबाइल से बढ़ रही बच्चों की दोस्ती

सर्वे में 1 से 5 साल की उम्र के 710 बच्चों के माता-पिता से बातचीत की गई, जिसमें 2 से 7% तक की त्रुटि की संभावना बताई गई है। परिणामों से यह स्पष्ट हुआ कि बच्चों का बाहर खेलने का समय तेजी से घटता जा रहा है। इसकी दो मुख्य वजहें हैं- एक, मोबाइल और डिजिटल डिवाइस पर बढ़ता समय, और दूसरी, माता-पिता का बच्चों की सुरक्षा को लेकर बढ़ता डर।

माता-पिता के डर की वजह से सीमित हुआ बचपन

रिपोर्ट में सामने आया कि 40% माता-पिता को डर रहता है कि उनका बच्चा कहीं चोटिल न हो जाए। उन्हें चिंता होती है कि बच्चा कहीं गिर न जाए, ऊंचाई पर चढ़ते वक्त फिसल न जाए या कहीं दूर चला न जाए। यही कारण है कि कई पैरेंट्स अपने बच्चों को पार्क या ग्राउंड में जाने से रोकते हैं या हमेशा उनकी निगरानी में रखते हैं।

पेड़ पर चढ़ना, साइकिल चलाना या झूले से गिरना जैसी गतिविधियां बच्चों के आत्मविश्वास, सहनशीलता और समस्या सुलझाने की क्षमता बढ़ाती हैं। ये बच्चों के विकास के लिए उतनी ही जरूरी हैं, जितनी पढ़ाई।

जोखिम भरा खेल, सीखने का मौका

जोखिम भरा खेल लापरवाही नहीं, बल्कि बच्चों की क्षमता को पहचानने का एक जरिया है। जब बच्चे खुद अपने डर से जूझते हैं और नई चीजें आजमाते हैं, तो वे मानसिक रूप से और मजबूत बनते हैं। लेकिन सर्वे में यह भी सामने आया कि लगभग आधे माता-पिता तब अपने बच्चे का हाथ पकड़ लेते हैं या पास बैठ जाते हैं जब वह कोई शारीरिक कोशिश कर रहा होता है। इससे बच्चों की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता पर असर पड़ता है।

खेलना है जरूरी, परफेक्ट होना नहीं

खेल बच्चों के सीखने और विकास की कुंजी है। यह जरूरी नहीं कि हर खेल परफेक्ट हो। खेल से बच्चों की क्रिएटिविटी, सामाजिक कौशल और भावनात्मक संतुलन विकसित होता है। माता-पिता को बच्चों को इतना स्पेस देना चाहिए कि वे अपनी कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल कर सकें और नए अनुभवों से सीख सकें।

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