हर किसी को चाणक्य की इस नीति पर चलना चाइये, पूरी जिन्दगी में नहीं होगी कोई कमी

प्राचीन समय से ही पुरुषों के लिए स्त्री का सुख को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। आज भी पुरुषों के लिए स्त्रियों के आकर्षण का केन्द्र सबसे अधिक माना जा रहा है। पुरुष चाहे जवान हो या बुढ़े, उसे अपने ह्दय में स्त्रियों के लिए विशेष जगह बनाई रखनी चाहिए। आचार्य चाणक्य ने पुरुषों के लिए एक अवस्था ऐसी बताई है, जब उनके लिए स्त्री जैसे किसी सर्प का रूप धारण कर लेती हों।
चाणक्य ने अपनी नीतियों कि शक्ति पर भारत को विदेशी शासक से सुरक्षित किया था। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य थे। उस समय यह विश्वविद्यालय विश्वविख्यात था। चाणक्य आजीवन अविवाहित रहे और उन्होंने कठिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया।

1. अजीर्णे भोजनं विषम्

चाणक्य ने बताया है कि अजीर्णे भोजनं विषम् यानी यदि व्यक्ति का पेट खराब हो तो उस अवस्था में भोजन विष के समान होता है। पेट खराब होने की स्थिति में छप्पन भोग भी विष की तरह प्रतीत होते हैं। ऐसी स्थिति में उचित उपचार किए बिना स्वादिष्ट भोजन से भी दूर रहना ही श्रेष्ठ रहता है।

2. दरिद्रस्य विषं गोष्ठी

इस श्लोक में चाणक्य ने आगे बताया है कि दरिद्रस्य विषं गोष्ठी यानी किसी गरीब व्यक्ति के कोई सभा या समारोह विष के समान होता है। किसी भी प्रकार की सभा हो, आमतौर वहां सभी लोग अच्छे वस्त्र धारण किए रहते हैं।

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3. वृद्धस्य तरुणी विषम्

इस श्लोक के अंत में चाणक्य कहते हैं कि वृद्धस्य तरुणी विषम् यानी किसी वृद्ध पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है। यदि कोई वृद्ध या शारीरिक रूप से कमजोर पुरुष किसी सुंदर और जवान स्त्री से विवाह करता है तो वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा।

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