हरियाणा में सुशासन दिवस: अटल जी की जयंती पर मंत्री खट्टर ने सुनाए पुराने किस्से

हरियाणा में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती को धूमधाम से मनाया गया। करनाल में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। वहीं, पंचकूला में सीएम सैनी ने सुशासन दिवस के कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
करनाल में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती मनाई गई। यहां पर केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इस मौके पर कई पार्टी कार्यकर्ता मौके पर मौजूद रहे।
केंद्रीय मंत्री ने सुनाए अटल जी के किस्से
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि एक बार जब राजस्थान में एक मंच से अटल जी के बोलने की बारी आई, तो मंच के संचालक ने कहा कि हम अटल जी का स्वागत एक बहुत बड़ी माला से करेंगे। अटल जी खड़े हो गए और जोर से बोले…नहीं…मुझे माला नहीं चाहिए, मुझे विजय चाहिए। आपातकाल के समय का जिक्र करते हुए मनोहर लाल खट्टर ने कहा रामलीला मैदान में अटल बिहारी वाजपेयी का संबोधन था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस समय टीवी पर बॉबी फिल्म चलाई थी ताकि अटल जी का संबोधन सुनने कम से कम जनता आए। बावजूद इसके काफी संख्या में लोग उन्हें सुनने आए। लोग अलट जी के भाषण के मुरीद थे।
सीएम सैनी ने भी सुशासन दिवस के कार्यक्रम में लिया हिस्सा
वहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर आयोजित ‘सुशासन दिवस’ कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने कहा आज मुझे खुशी है कि यहां अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा का अनावरण किया गया है। कल और आज उनके जीवन पर आधारित एक कॉफी टेबल बुक का विमोचन हुआ। गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा के विभिन्न गांवों में 250 से अधिक अटल पुस्तकालयों का उद्घाटन किया।
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर को मनाई जाती है। यह तिथि केवल एक राजनेता का जन्मदिन नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की उस परंपरा का उत्सव है, जिसमें विचारों की गरिमा, शब्दों की मर्यादा और राष्ट्रहित सर्वोपरि रहता है। अटल जी राजनीति के शोर में भी संयत, स्पष्ट और दूरदर्शी रहे।
वे भारत के उन नेताओं में थे, जिनका व्यक्तित्व सत्ता से बड़ा और विचार दलों से ऊपर था। एक कुशल वक्ता के रूप में उनकी भाषा में कटुता नहीं, बल्कि तर्क, संवेदना और आत्मविश्वास झलकता था। संसद हो या जनसभा, उनकी वाणी विरोधियों को भी सुनने पर मजबूर कर देती थी। वे जानते थे कि शब्द केवल हथियार नहीं, सेतु भी हो सकते हैं।





