‘स्कूल न जाते तो शायद जिंदा न होते’, चिशोती में 15 अगस्त की रिहर्सल ने बचा ली बच्चों की जान

15 अगस्त की रिहर्सल ने चिशोती गांव में अपर प्राइमरी स्कूल के 70-80 बच्चों की जान बचा ली, जो सैलाब से ठीक पहले स्कूल में अभ्यास कर रहे थे। वहीं लंगर में शामिल हुए कई लोग सैलाब की चपेट में आ गए और 67 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।
इसे किस्मत ही कहेंगे। चिशोती नाले में आए सैलाब में जहां करीब 67 लोगों ने जान गंवा दी, वहीं अपर प्राइमरी स्कूल में मौजूद करीब 70-80 बच्चों की जान इसलिए बच गई क्योंकि वे 15 अगस्त की रिहर्सल कर रहे थे। उन्हें भी शिक्षकों के साथ मंदिर में लंगर खाने जाना था, लेकिन रिहर्सल खत्म होने से पहले ही यह हादसा हो गया। लंगर में शामिल होने गए लोग उस सैलाब में बह गए, लेकिन बच्चे बच गए।
चिशोती में आए सैलाब के बाद स्कूल से निकले स्कूली बच्चे।
अपर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक हुकमचंद राठोर सैलाब की भयावहता को याद करते ही अब भी कांप जाते हैं। उनके भाई और रिश्तेदार भी इस सैलाब में बह गए थे और आज वे इस दुनिया में नहीं हैं। राठोर ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि ईश्वर ही जानता है कि उसकी क्या इच्छा थी। हमारा बच जाना उसी की कृपा है।
रुंधे गले से हुकमचंद ने बताया कि स्कूल के बच्चे कुछ दिनों से स्वतंत्रता दिवस की तैयारी में लगे हुए थे। इसी के तहत 13 अगस्त को ”हर घर तिरंगा” रैली निकाली गई थी। 14 अगस्त को स्कूल की छुट्टी थी। बच्चे अपने साथियों के साथ खेलना और लंगर में जाना चाहते थे।
वे रिहर्सल के लिए बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं थे, लेकिन स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम को बहुत कम समय बचा होने की वजह से उन्होंने बच्चों को दोपहर एक बजे, यानी स्कूल बंद होने के समय तक, रिहर्सल में जुटे रहने को कहा। दूसरे स्थानों में पढ़ रहे गांव के 10वीं-12वीं के छात्रों को भी उन्होंने स्कूल सजाने में मदद के लिए बुला लिया था।
राठोर बताते हैं कि बच्चों ने सरदार भगत सिंह के जीवन और ”ऑपरेशन सिंदूर” पर स्किट तैयार किए थे। रिहर्सल चल ही रही थी कि तभी अचानक हेलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट जैसी आवाज आई। मच्छल के लिए अक्सर गांव के ऊपर से विमान गुजरते हैं, क्योंकि वहां हेलीपैड बना है। राठोर के अनुसार, “मैंने सोचा कि शायद विमान उड़ रहा हो। तभी एक बच्चे ने बताया कि स्कूल के बाहर पानी आ गया है।
जब मैंने छत पर चढ़कर देखा तो होश उड़ गए। थोड़ी ही दूरी पर चीख-पुकार मची थी। चारों तरफ पानी और मलबे का ढेर लग चुका था। तभी बच्चों का नाम पुकारते हुए उनके मां-बाप का रोते-बिलखते स्कूल पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। जब उन्हें बताया गया कि सब सुरक्षित हैं, तब उनकी जान में जान आई। हुकमचंद ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं कि उस दिन बच्चे स्वतंत्रता दिवस के लिए रिहर्सल कर रहे थे। अगर बच्चे घर पर होते तो न जाने क्या होता।
नाना के घर न जाती तो बच जाती अरुंधति
चिशोती की रहने वाली 11 साल की अरुंधति इस स्कूल में नहीं पढ़ती थी, लेकिन अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के साथ वह स्कूल में रिहर्सल देखने आ जाती थी। हुकमचंद राठोर ने बताया कि 14 अगस्त को अरुंधति स्कूल न आकर अपने नाना-नानी के घर चली गई थी। सैलाब आया तो नाना के साथ ही अरुंधति भी बह गई। हुकमचंद बार-बार इस बात को दोहराते रहे कि अगर अरुंधति नाना के घर न गई होती तो शायद बच जाती।