सीएम योगी से मिलने के बाद डीएम के खिलाफ हुए मंत्री ओपी राजभर का धरना कैंसिल


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इसके बावजूद डीएम को नहीं हटाया जा रहा है। उन्होंने कहा बताया था कि सीएम ने उन्हें सोमवार को बुलाया है। मुलाकात के दौरान वह डीएम के 19 कारनामों की सीडी सीएम को सौंपेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से संपर्क कर उन्हें भी पूरे प्रकरण की जानकारी देंगे।
राजभर ने बताया था कि गाजीपुर की 70 प्रतिशत जनता डीएम के व्यवहार से नाराज है। उन्होंने कहा, पिछले 15 साल में मैं दलित, पिछड़ों और कमजोर लोगों के हक की लड़ाई लड़ता रहा हूं और उन्हीं लोगों की बदौलत विधायक भी बना हूं।
बसपा के वोट बैंक माने जाने वाले समाज के दबे-कुचले लोगों ने भी इस बार भाजपा गठबंधन को वोट देकर सरकार बनवाई है। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार बदलेगी तो उनकी समस्याएं भी दूर होंगी, लेकिन अब अपनी सरकार में ही अधिकारी मेरी बात नहीं सुन रहे हैं।
उन्होंने कैबिनेट की बैठक में भी हिस्सा न लेने की बात कही थी। ये पूछे जाने पर कि कम महत्वपूर्ण विभाग का मिलना तो उनकी नाराजगी की वजह नहीं है? राजभर ने कहा, मेरे पास तो सीएम से भी बड़ा विभाग है।
प्रदेश की 22 करोड़ जनता में दिव्यांगों की संख्या करीब 2 करोड़ है और पिछड़ी जाति की 54 प्रतिशत आबादी है। इनके कल्याण की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है। इसलिए विभाग को लेकर नाराजगी की चर्चा बेबुनियाद है।
अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावती सुर बुलंद करते हुए ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि मैं भी गठबंधन सरकार का एक जिम्मेदार मंत्री हूं। इसके बावजूद मेरे ही गृहजिले में ऐसी बेकद्री है तो अन्य जिलों में कार्यकर्ताओं के काम कैसे होते होंगे।
राजभर ने बताया था कि मुख्यमंत्री को उन्होंने पूरी बात बताई थी, लेकिन उन्होंने गाजीपुर के प्रभारी मंत्री बृजेश पाठक से मिलने के लिए कह दिया। पाठक से भी मिलकर अपनी समस्या बताई, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ।
आज भी मेरी उनसे बात हुई है। मुझे पूरी उम्मीद है कि मामले को सलटा लिया जाएगा। राजभर ने मीडिया से कहा, डीएम को कहीं न कहीं से राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है।
इसीलिए वह जानबूझ कर मेरी प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि राजभर की परेशानी का कारण सिर्फ डीएम ही नहीं हैं, बल्कि गाजीपुर से सांसद और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की अधिकारियों पर अच्छी पकड़ भी है।
दोनों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी जगजाहिर है। एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मनोज सिन्हा शुरू से ही भासपा से गठबंधन के खिलाफ थे।
उनकी इच्छा थी कि भाजपा ही पार्टी के ही राजभर नेताओं को आगे बढ़ाए। माना जा रहा है कि राजभर की इस पीड़ा के पीछे मनोज सिन्हा का जिले में बढ़ता सियासी कद है। डीएम तो बस मोहरा बनाए जा रहे हैं।





