सिर्फ महाकाल ही नहीं, उज्जैन का यह शक्तिपीठ भी है खास, इस वजह से मिला हरसिद्धि का नाम

नवरात्र के दौरान देशभर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जा रही है। उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर जो 51 शक्तिपीठों में से एक है इस दौरान भक्तों से भरा रहता है। माना जाता है कि यहां देवी सती की कोहनी गिरी थी। राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था जिसका मराठा काल में पुनर्निर्माण हुआ।

देशभर में नवरात्र की धूम देखने को मिल रही है। 22 सितंबर से शुरू हुआ यह त्योहार हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही लोग माता रानी के मंदिर जाकर देवी मां का आशीर्वाद भी लेते हैं। देश-विदेश में दुर्गा मां के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में 51 शक्तिपीठों क महत्व सबसे ज्यादा है।

सिर्फ भारत ही नहीं, ब्लकि दूसरे देशों में भी कई शक्तिपीठ मौजूद हैं और उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर इन्हीं में से एक है। यहां नवरात्र के मौके पर हर साल भक्तों का तांता लगा रहता है। आमतौर पर उज्जैन का नाम सुनते ही सिर्फ महाकाल का नाम याद आता है, लेकिन यहां शक्तिपीठ भी मौजूद है। आइए जानते हैं इस मंदिर के इतिहास, मान्यता और यहां पहुंचने के आसान तरीके के बारे में-

मंदिर में मौजूद हैं तीन देवियां
उज्जैन एक प्राचीन नगरी होने के साथ-साथ एक पवित्र स्थल भी माना जाता है। यहां कई प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त मंदिर मौजूद हैं और हरसिद्धि देवी मंदिर इन्हीं में से एक है। इस मंदिर में महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों के बीच हरसिद्धि माता की मूर्ति विराजमान है, जो गहरे सिंदूरी रंग में रंगी हुई है। साथ ही इस मंदिर में शक्ति का प्रतीक श्रीयंत्र भी में स्थापित है।

क्या है मंदिर का इतिहास?
शिव पुराण के अनुसार, जब शिव अग्नि से जलते देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर वियोग में भटक रहे थे, तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो धरती पर अलग-अलग जगह जाकर गिरे। पृथ्वी पर जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। मान्यता है कि उज्जैन में जहां माता हरसिद्धि का मंदिर स्थित है, वहां पर देवी सती की कोहनी गिरी थी।

कैसे मिला हरसिद्धि नाम?
स्कंद पुराण में देवी चंडी को हरसिद्धि की मिलने की एक रोचक कथा मिलती है। एक बार जब शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर अकेले थे, तो चंड और प्रचंड नामक दो राक्षसों ने बलपूर्वक कैलाश में प्रवेश करने का प्रयास किया। इस पर शिव ने चंडी को उनका नाश करने के लिए बुलाया और चंडी ने ऐसा ही किया। तब प्रसन्न होकर, शिव ने उन्हें ‘सबको जीतने वाली’ यानी हरसिद्धि की उपाधि प्रदान की।

कैस हुआ मंदिर का निमार्ण?
उज्जैन के राजा विक्रमादित्य हरसिद्धि माता को अपनी कुलदेवी मानते थे और उन्होंने ही मंदिर का निर्माण करवाया था। वहीं, मराठा काल में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर के प्रांगण दीपों से सुसज्जित दो खास स्तंभ भी हैं, जो मराठा कला की विशेषताओं को दर्शाते हैं। हर रोज संध्या आरती और नवरात्र के दौरान जलाए गए ये दीपक एक अद्भुत नजारा पेश करते हैं। इसके अलावा यहां परिसर में एक प्राचीन कुआं है, जिसके शीर्ष पर एक कलात्मक स्तंभ मौजूद है।

कैसे पहुंचें?
हरसिद्धि मंदिर पहुंचने के लिए आप बस, ट्रेन या एयरप्लेन, किसी भी ट्रांसपोर्ट की मदद ले सकते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको उज्जैन पहुंचना होगा। अगर आप ट्रेन से आ रहे हैं, तो आपको उज्जैन जंक्शन पहुंचना होगा। इसके अवाला आप इंदौर से भी उज्जैन आ सकते हैं। इसके अलावा आप फ्लाइट से इंदौर तक आ सकते हैं और फिर यहां से बाईरोड उज्जैन जा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button