सिर्फ दक्षिण भारत ही नहीं, पूरे देश में पसंद किया जाता है पायसम

पायसम सिर्फ दक्षिण भारत का पकवान नहीं बल्कि इसकी विविधता ने इसे पूरे देश में फैला दिया है। किसी उत्सव, त्योहार या विशेष अवसर पर बनने वाले व्यंजनों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले पायसम के स्वाद का रहस्य बता रहे हैं रेडिसन ब्लू एमडीबी होटल, नोएडा के शेफ सार्थक शर्मा।

यूं तो भारतीयपाक परंपरा में व्यंजनों की कोई कमी नहीं, मगर थाली में कितने ही व्यंजन क्यों न सजे हों, हर कमी को पूरा करने के लिए जरूरी है कि कुछ मीठा हो जाए। त्योहारों के इस मौसम में एक संवाद जरूर घूमता है कि मुंह मीठा करना तो बनता है। जरूरी नहीं कि चाकलेट या विदेशी मिठाई ही हाे। हमारी पाक परंपरा में कई व्यंजन हैं, जिनका कोई विकल्प नहीं। साल-भर तो विदेशी व्यंजनों को लेकर हम आकर्षित होते रहते हैं, मगर त्योहार वो अवसर होते हैं, जब देसी स्वाद पर मन आ ही जाता है। इसी स्वाद का एक नाम है पायसम। यह सिर्फ पकवान नहीं, बल्कि एहसास है- जो बचपन की यादें, त्योहारों की खुशी और घर के स्वाद को समेटकर रखता है। इस व्यंजन की क्षेत्रीय विविधता, इसे बनाने की कला और आधुनिक रसोई में इसके प्रयोग इसे ला देते हैं स्वाद की शीर्ष सूची में।

चार कोस में बदले स्वाद

भारत की पाक-कला पायसम/खीर के अनगिनत रूपों का सुंदर गुलदस्ता पेश करती है। हर क्षेत्र का अपना एक अनूठा स्वाद है। केरल में यह अडा प्रधमन है, जिसमें चिवड़ा (अडा), गुड़ और नारियल का दूध उपयोग होता है, जिससे इसे गहरा, कैरेमल जैसा स्वाद मिलता है। तो वहीं बंगाल में यह पायेश का रूप ले लेता है, जिसमें सुगंधित, छोटे दाने वाले गोबिंदभोग चावल को खजूर के गुड़ (नोलेन गुड़) के साथ पकाया जाता है, जो इसे सर्दियों की सेहतमंद गर्माहट देता है। वहीं उत्तर भारत में इसे खीर के रूप में जाना जाता है। यह मुख्य रूप से बासमती चावल और दूध से बनती है। इस मलाईदार व्यंजन में इलायची की हल्की महक होती है और इसे चीनी से मीठा किया जाता है। स्वाद में मुख्य बदलाव मिठास और दूध के चुनाव से आता है। गुड़ इसे सोंधी-पारंपरिक मिठास देता है, जबकि चीनी से इसकी रंगत साफ और हल्की रहती है। नारियल का दूध नटी फ्लेवर देता है, जबकि डेयरी दूध स्मूद टेक्सचर देता है।

धीमी आंच और सब्र का जादू

स्वादिष्ट पायसम बनाने का रहस्य धीमी आंच पर पकाने में छिपा है। समय ही यहां वह सीक्रेट इनग्रेडिएंट है। जब दूध धीरे-धीरे गाढ़ा होता है, तो उसमें आने वाला सोंधापन और गाढ़ी मलाई का कोई शार्टकट नहीं। इसे लगातार चलाते रहना, जलने से बचाना, स्वाद को आपस में धीरे-धीरे शामिल होने देना और चीनी को हल्का-सा कैरामलाइज होने तक पकाना- ये ही वो चरण हैं, जो इस पकवान को खास बना देते हैं। दूध और चावल का सही अनुपात भी महत्वपूर्ण है ताकि पायसम न ज्यादा गाढ़ा हो और न ही पतला।

परंपरा और नवाचार का संतुलन

आधुनिक रसोई में ऐसे पारंपरिक व्यंजनों को सम्मान के साथ नए रंग दिए जाते हैं। यहां कुछ नया करने के लिए सबसे जरूरी है कि हम परंपरागत तरीकों का सम्मान करें। यह जरूरी है कि मूल स्वाद, पुरानी यादें और वो टेक्सचर बरकरार रहे। यह क्लासिक व्यंजन में नई परतें जोड़ने जैसा है, न कि उसे बदलना। इसके लिए हमने आधुनिक प्रयोग किए हैं- जैसे भुने हुए अंजीर और केसर का मिश्रण, माचा का हल्का फ्लेवर, गुलाब और पिस्ता क्रीम का मिश्रण इस परंपरागत व्यंजन में नए स्वाद जोड़ देता है। चावल की जगह बाजरा और चीनी की जगह एगेव नेक्टर का उपयोग भी हो रहा है। एक बार हमने दक्षिण भारतीय विधि से प्रेरित कटहल अडा प्रधमन अपने मेहमान को प्रस्तुत किया था। यह मौसमी व्यंजन है जो पके कटहल के गूदे, नारियल के दूध, गुड़ और अडा को मिलाकर बनता है, आखिर में इसे घी में तले हुए काजू और बारीक कटे नारियल से सजाया जाता है!

प्रेजेंटेशन के पूरे नंबर

पारंपरिक रूप से, पायसम को भव्य भारतीय दावत के अंत में, गर्म या ठंडा परोसा जाता है। दक्षिण भारत में अक्सर इसे केले के पत्ते पर और उत्तर में अलंकृत कटोरियों में परोसा जाता है। मसालेदार और नमकीन व्यंजनों की लंबी शृंखला के बाद पायसम की मिठास एक संतुलन लाती है। एक लक्जरी होटल सेटिंग में इसकी प्रेजेंटेशन को और शानदार बनाने के लिए मिट्टी के छोटे बर्तनों या एलीगेंट शाट गिलास में भी परोसा जाता है और हमेशा भुने हुए मेवों या एडिबल गोल्ड वर्क से सजाया जाता है। हमने तो सिंगल-सर्व पायसम ट्रायो और राइस खीर ब्रुएली (कैरेमलाइज्ड क्रस्ट वाली) जैसे नवाचार भी किए हैं।

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