जो न कर सकी प्रदेश सरकार उसे गूगल ने कर दिखाया

जो काम प्रदेश की मनोहर सरकार नहीं कर सकी उसे गूगल ने कर दिखाया है। इंटरनेट की दुनिया में बल्लभगढ़ अब बलरामगढ़ नाम से प्रचारित हो रहा है। गूगल मैप व गूगल वेदर पर इस बदलाव को देखा जा सकता है।
  प्रदेश सरकार उसे गूगल
अभी तक जिन लोगों की नजर इस पर पड़ी है, वे यह सोच कर हैरान हैं कि गूगल ने बिना किसी सरकारी नोटीफिकेशन के यह काम कैसे कर दिया। धीरे-धीरे यह मुद्दा बुद्धिजीवी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनता जा रहा है।

कुछ दिनों पहले तक तो गूगल मैप पर भी बल्लभगढ़ नाम था मगर अब यहां बलरामगढ़ नाम लिखा हुआ आ रहा है। वहीं गूगल वेदर पर भी यही नाम अब शो हो रहा है।

बता दें कि बल्लभगढ़ से भाजपा विधायक मूलचंद शर्मा द्वारा अप्रैल में अनाज मंडी में आयोजित विकास रैली में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बल्लभगढ़ का नाम बदलकर बलरामगढ़ किए जाने का ऐलान किया था। उनकी घोषणा से पहले रैली में आए लोगों से नाम बदलने के समर्थन में हाथ खड़ा किया था।

मगर इसके कुछ दिन के बाद बल्लभगढ़ के विभिन्न संगठनों ने इसका तीव्र विरोध किया था। कहा था कि नाम बदलने से आम आदमी सहित उद्योगों से लेकर कारोबारियों तक को काफी दिक्कत होगी। क्योंकि हर चीज में नाम बदलना होगा। इसमें अधिक समय लगने के साथ ज्यादा खर्च भी होगा।

तैयारी से पहले ही पीछे हटे कदम

प्रदेश सरकार ने जब गुड़गांव का नाम गुरुग्राम किया था तो भी लोगों द्वारा तीव्र विरोध किया गया था। सबसे अधिक कॉरपोरेट कंपनियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, आईटी-आईटीईएस, केपीओ व एलपीओ ने विरोध किया था।

यही नहीं वैश्विक स्तर पर भी इसका विरोध हुआ था। इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने अपना कदम पीछे नहीं हटाया और केंद्र की मंजूरी के बाद इसका नोटीफिकेशन जारी कर दिया था।

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ऐसे में बल्लभगढ़ को लेकर थोड़े से विरोध में सरकार पीछे हट गई। स्थानीय विधायक मूलचंद शर्मा इस संबंध में कई बार मुख्यमंत्री से मिले और जनभावनाओं से उन्हें अवगत कराया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने बल्लभगढ़ का नाम बदलने की प्रक्रिया रोकने के निर्देश दिए थे।

इतिहास के कारण सरकार बदलना चाहती थी नाम
प्रदेश सरकार बल्लभगढ़ का नाम बलरामगढ़ इसके इतिहास को देखते हुए करना चाहती थी। बल्लभगढ़ को 1606 में राजा बलराम सिंह उर्फ बल्लू ने अपने नाम पर बसाया था। राजा बलराम की सातवीं पीढ़ी में राजा नाहर सिंह अंतिम शासक हुए। 09 जनवरी 1857 को राजा नाहर सिंह को दिल्ली में अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई। इसके बाद इस शहर का ऐतिहासिक गौरव खत्म सा हो गया था। इसलिए इस शहर को राजा बलराम सिंह के नाम पर सरकार रखना चाहती थी। 

 
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