संगीतमय उर्दू ड्रामा- ‘जफर- पैकर ए इंसानियत ओ मोहब्बत’ का मंचन आज
- कन्वेंशन सेण्टर मंच पर ज़फ़र, ग़ालिब, मोमिन, ज़ौक व दाग़
- जंगे आजादी के सरपरस्त बहादुरशाह ज़फ़र के ज़िन्दगी का आईना होगा संगीतमय नाटक
लखनऊ, 27 दिसम्बर। ‘न किसी की आंख का नूर हूं….., लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में….’ और ‘बेकरारी तुझे ए दिल कभी……’ जैसी कई गजलें कहने वाले प्रथम स्वाधीनता संग्राम के सरपरस्त रहे मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की जिन्दगी को पेश करते संगीतमय उर्दू ड्रामा- ‘जफर- पैकर ए इंसानियत ओ मोहब्बत’ का मंचन कल 28 दिसम्बर को शाम 6.30 बजे अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेन्शन सेण्टर चैक में होगा। आसिफ रिजवी की परिकल्पना और प्रदीप श्रीवास्तव के लेखन-निर्देशन में अवध आर्ट गैलेक्सी और उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की इस पेशकश में मुख्य अतिथि राज्यपाल राम नाईक और विशिष्ट अतिथि के तौर पर बादशाह जफर के वंशज और कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुरशाह जफर तृतीय व पूर्व मंत्री डा.अम्मार रिजवी उपस्थित रहेंगे।
मंचन के सिलसिले में राजधानी पहंुचे प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुरशाह जफर तृतीय ने अपने पूर्वज के देशहित में किये कार्यों व साहित्य में दिये योगदान की चर्चा करते हुए इस बात पर दुख जाहिर किया कि जिस कौमी यकजहती के लिए उनके पूर्वज ने नेतृत्व किया, लड़ाई लड़ी और कुर्बानी दी आज देश का माहौल उसके अनुकूल नहीं है, उनकी मेहनत और कुर्बानी जाया होती दिख रही है। उन्होंने यह इच्छा भी जाहिर की कि उनके पूर्वज की रंगून स्थित खाक ए पाक को भारत लाया जाए और उनका एक शानदार स्मारक यहां बनवाया ंजाए।
पूर्व मंत्री अम्मार रिज़वी ने महमूदाबाद के एक संस्थान में सरकारी मदद से जफर प्रेक्षागृह बनवाने की जानकारी देते हुए प्रिंस मिर्जा की ख्वाहिशें दोहराईं और कहा कि मरहूम बादशाह की शायरी, उनकी बहादुरी और कुर्बानी पर मबनी हो रहा ये ड्रामा प्रिंस मिर्जा की मौजूदगी में दर्शकों पर और ज्यादा असर छोड़ेगा। साथ ही नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बनेगा। ऐसे आयोजन बराबर होने चाहिए और इसके लिए उर्दू अकादमी की अध्यक्ष प्रो.आसिफा जमानी बधाई की पात्र हैं। प्रो.आसिफा ने अतिथियों का स्वागत करने के साथ कहा कि अकादमी के ऐसे आयोजनों से नई पीढ़ी को कई जानकारियां मिलेगी साथ ही मालूम होगा कि कितनी मुश्किलात से हमने आजादी पाई।
नाटक के परिकल्पनाकार आसिफ रिजवी ने बताया जफर भारतीय इतिहास के अकेले ऐसे बादशाह रहे हैं जो जितना राजनीति में रहे वैसे ही साहित्य जगत में भी मुब्तिला रहे हैं। उन्होंनेे कौमी यकजहती की मिसाल पेश की। वे एक बादशाह ही नहीं, शायर, अजीम इंसान, कौमी एकता के अलम्बरदार और जंगे आजादी के सरपरस्त थे। संयोजक अतहर नबी ने कहा- जब जफर के दर्द का दरिया रवां होता है तो उनकी हयात के तमाम जख्म मर्बूत होते हैं। ये पेशकश तीन हिस्सों में चलती है, एक तरफ रूहे पैकर, दूसरी तरफ ड्रामा और तीसरी तरफ मौसिकी। प्रस्तुति में जगजीत सिंह के शागिर्द जयदेव और उस्ताद हयात हुसैन खां ने अपने संगीत के साथ उनके सुरों का हुनर भी देखने को मिलेगा।
नाटक के लेखक-निर्देशक प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो बहादुर शाह जफर आवाम ने तस्लीम हासिल करने वाले पहले ऐसे बाद्शाह पहले ऐसे मुगल थे, जो अहले सुखन रहे। उन्हें पहली जंगे आजादी के रहनुमा होने का रुतबा भी हासिल है। उनके किरदार की यही खूबियां, उनकी हयात के नशेबो फराज बहुत सारे सबक देते है। इसको ड्रामे की सूरत दी गई है, लेकिन क्राफ्टिंग के लिहाज से इसको म्यूजिकल कोलाज कहना बेहतर होगा। दास्तान ए जफर कहने में उनकी कई गजलों को पिरोया गया है। नाटक में जफर के चरित्र में आकाश पाण्डे व जीशान काजी और जीनत महल की भूमिका में नाज खान हैं। अन्य प्रमुख किरदारों गालिब, जौक, मोमिन, शेफ्ता, दाग व जहीर की भूमिका में अतहर नबी, गोपाल सिन्हा, हसन काजमी, अश्फाक, अमित, विशाल श्रीवास्तव शेष कलाकारों के साथ मंच पर उतरेंगे।