वैश्विक तनाव के बीच ब्याज दरों में कटौती से विकास को मिलेगा बढ़ावा

आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के दौरान गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि रेपो रेट में कटौती से आर्थिक विशेषज्ञ इस बात को लेकर नि¨श्चत होंगे कि केंद्रीय बैंक वैश्विक तनाव के बीच विकास का समर्थन कर रहा है। शुक्रवार को एमपीसी बैठक के मिनट्स जारी किए गए। मौद्रिक रुख में बदलाव के बारे में उनका मानना था कि मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ रखने से केंद्रीय बैंक को उभरती घरेलू और वैश्विक आर्थिक स्थितियों के हिसाब से रेपो रेट में कटौती या वृद्धि करने के लिए आवश्यक लचीलापन मिलेगा।

मल्होत्रा ने कहा, उपायों का यह पैकेज अनिश्चितता के समय में कुछ निश्चितता प्रदान करेगा और विकास को समर्थन देने की उम्मीद है। छह जून को आरबीआइ गवर्नर की अध्यक्षता वाले छह सदस्यीय पैनल ने रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती की थी। इस तरह, पिछले पांच महीनों रेपो रेट में कुल कटौती 100 आधार अंक हो गई है। इसके अलावा, नीतिगत रुख को उदार से तटस्थ में बदल दिया गया। तीन दिवसीय बैठक (4-6 जून) के दौरान पांच सदस्यों ने रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती के लिए मतदान किया जबकि समिति के एक बाहरी सदस्य सौगत भट्टाचार्य ने 25 आधार अंकों की कटौती का सुझाव दिया था।

पिछले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति में लगभग तीन प्रतिशत की तीव्र कमी (अक्टूबर 2024 में 6.2 से अप्रैल 2025 में 3.2) और वार्षिक औसत मुद्रास्फीति में लगभग एक प्रतिशत की कमी के साथ 4.6 से 3.7 प्रतिशत तक अनुमानित महंगाई दर को देखते हुए मल्होत्रा ने 50 आधार अंकों की कटौती के लिए मतदान किया था।

आगे किसी तरह की छूट देने की गुंजाइश कम एमपीसी में आरबीआइ के तीन अधिकारी-गवर्नर मल्होत्रा, डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता और कार्यकारी निदेशक राजीव रंजन और सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्य-नागेश कुमार, सौगत भट्टाचार्य और राम ¨सह शामिल हैं। मिनट्स के अनुसार, डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता की यह भी राय थी कि रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती से नीतिगत निश्चितता को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक अर्थव्यवस्था से उत्पन्न चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सकेगा। उन्होंने रुख को उदार से तटस्थ में बदलने का भी समर्थन किया।

उन्होंने कहा,इसका मतलब है कि आगे की कोई भी कार्रवाई आने वाले आंकड़ों और उभरती वैश्विक अनिश्चितताओं पर निर्भर होगी। राजीव रंजन ने कहा कि रेपो रेट में 50 आधार अंकों की कटौती करने के बाद आरबीआइ के पास आगे किसी तरह की छूट देने की गुंजाइश कम होगी।

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