वेटिंग ही रह गए आडवाणी, आखिरी गाड़ी में भी नहीं मिली सीट

बीजेपी संसदीय बोर्ड की महत्वपूर्ण बैठक के बाद एनडीए ने अगले राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. हमेशा की ही तरह शाह और मोदी की जोड़ी ने इस बार भी राजनीतिक पंडितों को धत्ता बताते हुए एक लो प्रोफाइल और ईमानदार नाम खोज निकाला है. बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक का विरोध शायद ही कोई करे. हालांकि रामनाथ कोविंद के नाम से सबसे बड़ा धक्का आडवाणी गुट को लगा होगा क्योंकि मोदी को देश की सत्ता मिलने के बाद यह माना जाने लगा था कि देश के अगले राष्ट्रपति लाल कृष्ण आडवाणी ही होंगे.

वेटिंग ही रह गए आडवाणी, आखिरी गाड़ी में भी नहीं मिली सीट

पहले ही बता दिया गया था फैसला

आपको बता दें कि रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा करने से पहले ही बीजेपी ने अपनी मंशा लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनहोर जोशी के सामने जाहिर कर दी थी. गौरतलब है कि बीजेपी के ये दोनों सीनियर नेताओं को अपने नाम की उम्मीद थी.

मजबूत लामबंदी भी काम ना आई

लाल कृष्ण आडवाणी के लिए बीजेपी और संघ के तमाम नेता लामबंद थे. सभी ने पुरजोर कोशिश की देश के अगले राष्ट्रपति के तौर पर आडवाणी नजर आएं लेकिन सारी मेहनत पर मोदी-शाह की जोड़ी ने पानी फेर दिया.

ट्वीट से लेकर पोस्टर तक

हाल ही में लाल कृष्ण आडवाणी को लेकर बीजेपी के ‘शॉटगन’ शत्रुघन सिन्हा ने कई ट्वीट किए थे. शत्रुघन का कहना था कि राष्ट्रपति पद के लिए आडवाणी से बेहतर विकल्प कोई और नहीं हो सकता. इसके अलावा रविवार को बीजेपी कार्यालय के बाहर आडवाणी के पक्ष में पोस्टर भी लगाए गए थे. पोस्टर के जरिए संदेश देने की कोशिश की गई थी कि आडवाणी को ही अगला राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए.

तो इसलिए वेटिंग ही रही आडवाणी की सीट?

रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल हैं. गरीब और दलित पृष्ठभूमि के साथ-साथ वे गरीबों, पिछड़ों और दलितों के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे हैं. बिहार के राज्यपाल हैं, यूपी के रहने वाले हैं बीजेपी इससे कई तरह के फायदे की उम्मीद लगा रही होगी. एक ओर उसे दलित वोट बैंक तो दूसरी ओर बिहार और यूपी जैसे बड़े राज्य नजर आ रहे हैं जो 2019 में सत्ता वापसी की राह काफी आसान कर सकते हैं.

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बहरहाल, एनडीए ने अपना उम्मीदवार चुन लिया है. उम्मीद है कि विपक्ष भी इस नाम पर अपनी रजामंदी दे सकता है. हालांकि यह सोनिया गांधी के नेतृत्व में 22 जून को होने वाली विपक्षी दलों की मीटिंग में तय हो जाएगा. लेकिन, अब देखना वाला यह होगा कि एक बार फिर ‘वेटिंग’ ही रह जाने के बाद (आडवाणी को पहले पीएम इन वेटिंग फिर प्रेसिडेंट इन वेटिंग) अब आडवाणी और उनके समर्थकों का रुख क्या होगा.

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