विराट और शास्त्री के छह बल्लेबाज; पांच गेंदबाज के मंत्र से अलग है गंभीर और गिल की ट्रिक

हमेशा से टेस्ट क्रिकेट में जीत का मूल मंत्र रहा है विपक्षी टीम के 20 विकेट चटकाना। विराट कोहली और रवि शास्त्री के नेतृत्व में भारतीय टीम इसी सिद्धांत को आधार बनाकर दुनिया की नंबर एक टेस्ट टीम बनी थी। उनका स्पष्ट फार्मूला था, छह विशेषज्ञ बल्लेबाज के साथ पांच मुख्य गेंदबाज खिलाओ। यह रणनीति भारत को विदेशों में ऐतिहासिक जीतें दिलाने में सफल रही, लेकिन समय बदला, नेतृत्व बदला और रणनीति भी।
रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ के नेतृत्व में टीम ने बल्लेबाजी को गहराई देने के नाम पर ऑलराउंडरों को प्राथमिकता देना शुरू किया। अब गौतम गंभीर के कोच और शुभमन गिल कप्तान बनने के बाद भी यही सोच बरकरार है, लेकिन भारतीय टीम के प्रदर्शन पर इसका विपरीत असर दिख रहा है। न्यूजीलैंड से घरेलू मैदान पर 0-3 की शर्मनाक हार, फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-3 की पराजय और अब इंग्लैंड में पांच टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-1 से पिछड़ना।
ये सभी मुख्य कोच गौतम गंभीर के कार्यकाल की कड़वी सच्चाई हैं। तीनों ही सीरीज में भारत ने ‘हैवी आलराउंडर’ संयोजन के साथ मैदान में उतरने की कोशिश की, लेकिन परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे। इंग्लैंड के विरुद्ध लीड्स में खेले गए पहले टेस्ट में भारतीय टीम ने ऑलराउंडर के रूप में शार्दुल ठाकुर और रवींद्र जडेजा पर भरोसा जताया, लेकिन शार्दुल से केवल 16 ओवर गेंदबाजी कराई गई और वह बल्ले से भी विफल रहे।
अगले मैच में शार्दुल को बाहर का रास्ता दिखाकर उनकी जगह नीतीश रेड्डी को उतारा गया, जिनसे हेडिंग्ले में केवल पहली पारी में छह ओवर गेंदबाजी कराई गई और दूसरी पारी में उन्हें गेंद ही नहीं दी गई। वहीं बल्ले से उन्होंने केवल दो रन बनाए। वहीं इस मैच में साई सुदर्शन को बाहर कर एक और आलराउंडर वॉशिंगटन सुंदर को भी जगह दी गई, लेकिन सुंदर ने कुल 54 रन बनाए और 20 ओवर में सिर्फ एक विकेट लिया।
रवींद्र जडेजा ने जरूर दो अर्धशतक लगाए, लेकिन गेंद से उनका असर सीमित रहा। लार्ड्स में तीसरे टेस्ट मैच में भारतीय टीम प्रबंधन ने इन्हीं तीनों आलराउंडरों पर भरोसा जताया। दूसरी पारी में सुंदर ने चार विकेट लिए लेकिन बल्ले से योगदान नगण्य रहा। वहीं जडेजा ने दोनों पारियों में अर्धशतक लगाए, लेकिन टीम को उनसे गेंदबाजी में भी ज्यादा उम्मीद होती है लेकिन गेंद से वह कमाल नहीं कर पाए।
यह आंकड़े साफ बताते हैं कि टीम एक स्पष्ट रणनीति के बिना ऑलराउंडरों को प्राथमिकता दे रही है, जिनका योगदान दोनों विभागों में औसत से कम रहा है।टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी से अधिक मैच गेंदबाज जिताते हैं। विराट-शास्त्री युग की सफलता इसी तथ्य और कथ्य पर टिकी थी।
ऑलराउंडर भले ही टीम को लचीलापन देते हैं, लेकिन जब वे किसी एक विभाग में भी प्रभाव नहीं छोड़ते, तो टीम के संतुलन को नुकसान होता है। अगर भारत ने लार्ड्स में छह विशेषज्ञ बल्लेबाजों और पांच नियमित गेंदबाजों के साथ उतरने की हिम्मत दिखाई होती, तो शायद पहली पारी में बढ़त मिलती और दूसरी पारी में इंग्लैंड को 193 की बजाय 120 रन के भीतर रोका जा सकता था।
मैनचेस्टर में टीम संयोजन पर नजरें
23 जुलाई से मैनचेस्टर में शुरू होने जा रहे चौथे टेस्ट में वर्षा की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में दो स्पिनरों को खिलाना जोखिम भरा हो सकता है। उम्मीद है कि भारत चार तेज गेंदबाजों के साथ उतरेगा, लेकिन असली बदलाव सोच में लाने की जरूरत है। गौतम गंभीर को यह समझना होगा कि टेस्ट क्रिकेट में संतुलन से अधिक निर्णायकता मायने रखती है। जब तक भारत पांच गेंदबाजों के फार्मूले पर नहीं लौटता, तब तक जीत की पटरी पर वापसी मुश्किल दिखती है।