विमानों में हर यात्री के लिए क्यों नहीं होता पैराशूट? शायद ही किसी को पता होगा कारण!

अहमदाबाद में आज यानी 12 जून को एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है जिसमें 242 लोग सवार थे. खबर लिखे जाने तक 133 लोगों के शवों के मिलने की पुष्टि हुई है. ये प्लेन लंदन जा रहा था. इतने बड़े हादसे ने हर किसी को हैरान कर दिया है. ऐसे हादसों को देखकर लोगों के दिमाग में एक ख्याल तो जरूर आता होगा, कि यात्री विमान में हर यात्री के लिए एक पैराशूट क्यों नहीं रखते, जिसका इस्तेमाल कर वो क्रैश होने वाले प्लेन से कूदकर अपनी जान बचा सकें? शायद ही किसी को इसका कारण बता होगा.
फाइटर जेट्स और मिलिट्री एयरक्राफ्ट में पैराशूट मौजूद होते हैं, ताकि किसी गंभीर आपात स्थिति में विमान से कूदकर जान बचाई जा सके लेकिन जब रोज़ाना दुनिया भर में लाखों लोग कमर्शियल फ्लाइट्स से यात्रा करते हैं, तो सवाल उठता है कि क्या आम हवाई यात्रियों के लिए भी पैराशूट होने चाहिए? ऐक्शन फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि कोई भी व्यक्ति बिना तैयारी के पैराशूट पहनकर आसानी से विमान से कूद सकता है लेकिन असल जिंदगी में यह इतना आसान नहीं है. साइंस एबीसी वेबसाइट के अनुसार पैराशूट से कूदने के लिए विशेष प्रशिक्षण और अभ्यास की आवश्यकता होती है. यहां तक कि टैंडेम स्काइडाइविंग, जहां यात्री एक प्रशिक्षित विशेषज्ञ के साथ जुड़ा होता है, उसमें भी कम से कम आधे घंटे की ट्रेनिंग अनिवार्य होती है.
ज्यादा ऊंचाई पर उड़ता है कमर्शियल प्लेन
स्काइडाइविंग आमतौर पर 10,000 से 15,000 फीट की ऊंचाई पर की जाती है और वह भी नियोजित परिस्थितियों में. इसके विपरीत, कमर्शियल विमानों की उड़ान ऊंचाई लगभग 35,000 फीट होती है, जहां ऑक्सीजन नहीं होती और वातावरण बेहद ठंडा होता है ऐसे में बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के कोई भी व्यक्ति कुछ ही सेकंड में बेहोश हो सकता है. अगर विमान में अचानक कोई आपात स्थिति आ जाए और यात्रियों को पैराशूट पहनकर कूदना पड़े, तो यह बहुत मुश्किल स्थिति होगी. यात्रियों को न तो प्रशिक्षण होता है, न ही वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार होते हैं. उस घबराहट और अफरा-तफरी में पैराशूट पहनना, ऑक्सीजन मास्क लगाना और सही तरीके से कूदना लगभग असंभव हो जाता है.
तेज गति से हो सकती है दुर्घटना
कमर्शियल विमानों की गति बहुत तेज़ होती है. यदि कोई यात्री इतनी गति से विमान से कूदता है, तो गर्दन या शरीर के अन्य अंगों को गंभीर चोट लग सकती है. इसके अलावा, ये विमान न तो छोटे होते हैं और न ही इनके पिछले हिस्से में कोई खुला रैम्प होता है जैसा कि मिलिट्री विमानों में होता है. ऐसे में विमान से कूदते वक्त पंखों या पिछले हिस्से से टकराने का जोखिम बना रहता है. आंकड़ों के अनुसार, अधिकांश विमान दुर्घटनाएं टेक-ऑफ या लैंडिंग के दौरान होती हैं. ये वे समय होते हैं जब पैराशूट का उपयोग व्यावहारिक नहीं होता. उड़ान के मध्य भाग में दुर्घटनाएं अपेक्षाकृत कम होती हैं.