विचार मंथन : साँप के दाँत में, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में विष रहता है, किंतु दुर्जन मनुष्य के पूरे शरीर में विष रहता है- संत कबीर दास

संत कबीर दास एक ऐसे महान महापुरूष थे जिन्होंने अपने समय में अपने उच्च विचारों से लोगों को सोचने और उनके अनुरूप जीवन जीने के लिए बाध्य भी किया था । आज सौकड़ों सालों बाद भी उनके विचारों से प्रेरणा लेकर लोग अपने जीवन को उचित और श्रेष्ठ दिशा में ले जाते हैं ।
साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है । कष्ट पड़ने पर भी साधु पुरुष मलिन नहीं होते, जैसे सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही निखरता है । जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है ।
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर ।आशा तृष्ना ना मरी, कह गये दास कबीर ॥कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय ।आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ॥कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय ।उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय ॥
यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं । ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है । केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे काग़ज़ का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है । खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरुओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष । जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था, अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें ।
संत कबीर दास का मन के बारे में एक दोहा सदैव हर किसी के मन को भाता हैं ।
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत है ।कहे कबीर गुरु पाइये,मन ही के प्रतीत ।।
अर्थात – दुनिया में हमारे लिये कोई भी बात दो बार होती है, पहले मनके अंदर उस बात की रूपरेखा तैयार होती है और फिर वो बात हम करते है, उस तरह हम बर्ताव करते है । मन में आदमी पहली बार हारता या जीतता है और बाद में असल दुनिया में सफल या असफल होता है । इसलिये कबीर साहब कहते है, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत है । हमारा मन ही हमारा सबसे बडा गुरु है ।