विचार मंथन : ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती हैं, दूसरों के कन्धों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं- भगत सिंह

क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब प्रांत, ज़िला-लयालपुर, के बावली गाँव में हुआ था । भारत माँ का वीर सपूत इस अमर योद्धा का नाम जबान पर आते ही नौवजवानों हो या बुजूर्ग हर किसी के खून में गर्मी आने लगती हैं । उनका जोश पराक्रम और मातृभूमि के प्रति प्यार जो हमेशा लाखों नौजवानों को देश और अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य पालन पूरी निष्ठां से करने की सीख देता हैं । आज उनके जन्म दिवस पर उनके क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा लेकर, आइये हम भी अपनी मातृभूमि के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लें । आज भी उनका हर एक विचार रोंगटे खड़े करने वाला है ।
भगत सिंह के प्रेरणादायक विचारमैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है । निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं । व्यक्तियों को कुचल कर, वे विचारों को नहीं मार सकते । मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ. पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है । आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं । हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की ज़रुरत है ।
इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे । ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती हैं । दूसरो के कन्धों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं । अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें । क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है, स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है, श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है ।
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद है । यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा, जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं था, हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था, अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिये । ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था । प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं । किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । वे तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं । सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।
किसी को “क्रांति ” शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए । जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते है । मेरा धर्म देश की सेवा करना है । जो व्यक्ति भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी , उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी । जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए । मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है । मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा रहना नहीं चाहता । देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं । किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं । महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।