विचार मंथन : जंग लग जाने से बेहतर है, काम करते रहना, जब तक कार्य कर सकते हो करते रहो- भारत रत्न सर विश्वेश्वरैया

एक बालक की सुझबुझ
जब मैं केवल 14 वर्ष का था, तभी मेरे पिता की मृत्यु हो गई । पिता की मौत के बाद मन में प्रश्न खड़ा हुआ कि क्या अब आगे की अपनी पढ़ाई जारी रखूं या नहीं.. इस प्रश्न पर विचार-विमर्श के लिए मैंने अपनी माँ से पूछा, ‘अम्मा, क्या मैं बंगलौर जा सकता हूँ, और क्या मैं वहाँ मामा रमैया के घर पर रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकता हूं या नहीं । मैं कॉलेज में प्रवेश ले लूंगा, तो मां बोली बेटा तुम्हारे मामा अमीर नहीं हैं, तुम उन पर बोझ बनना क्यों चाहते हो, तभी मैंने माँ से कहा ‘अम्मा, मैं अपनी ज़रुरतों के लिए स्वयं ही कमाऊँगा । मैं बच्चों का ट्युशन पढ़ा दूँगा । अपनी फ़ीस देने और पुस्तकें ख़रीदने के लिए मैं काफ़ी धन कमा लूँगा । मेरे ख्याल से मेरे पास कुछ पैसे भी बच जायेंगे, जिन्हें मैं मामा को भी देकर उनकी भी मदद करूंगा ।’ इस पर मेरी मां ने कहा ‘जाओ मेरे पुत्र, भगवान तुम्हारे साथ है । जब मैं मामा के घर पहूंचा तो उन्होंने बहुत गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया । मैंने भी मामा को अपनी सारी योजना बताई, तो खुश होकर मामा ने प्यार से थपथपाते हुए कहा, ‘तुम बहुत होशियार हो । तुम्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए, इस प्रकार मैंने पिता की मौत के बाद विपरीत परिस्थिति में भी मां के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से अपनी पढ़ाई पूरी की ।
 
जब तक शरीर में प्राण हैं काम करते रहों
जीवन के अंतिम समय तक यानी की 102 वर्ष की आयु में भी वे काम करते रहे, उन्होंने कहा, इस शरीर में “जंग लग जाने से बेहतर है, की अंतिम समय तक काम करते रहो, और उनकी यह बात सच भी हुए, 102 वर्ष की उम्र में भी वे वह कार्य कर सकते थे, करते रहे, और वे अपने कार्यों के द्वारा अमर हो गये, क्योंकि अन्त समय तक भी उनका ज्ञान पाने का उत्साह कम नहीं हुआ था । वे सदैव एकाग्रचित्त होकर ज्ञान की तलाश में लगे रहते थे । विश्वेश्वरैया कठिन परिश्रम, ज्ञान को प्राप्त करने के अथक प्रयास, परियोजनाओं व योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए ज्ञान का उपयोग, जिसके द्वारा जनसमुदाय की आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुधारने के अधिक अवसर मिले, द्वारा महानता प्राप्त की । विश्वेश्वरैया में बहुमूर्तिदर्शी जैसा कुछ था । जितनी बार भी हम उन्हें देखते हैं, उनकी महानता का एक नया उदाहरण सामने आता है। चाहे उन्होंने किसी भी दृष्टिकोण से सोचा हो, उनकी महानता का कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता ।विश्वेश्वरैया जी ऐसे महान भारत रत्न थे जिनके पास हर प्रश्न का उत्तर मौजूद था । समाधान ढंढने की क्षमता उनके पूरे जीवन में लगातार विकसित होती रही और इस कारण वह एक महान व्यावहारिक व्यक्ति बन गये । वे कहा करते थे की मेरे जीवन का सार था और उनका संदेश एक मात्र यह हैं कि- ‘पहले जानो, फिर करो ।’

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