वर्षा ऋतु में स्वस्थ रहने के उपाय

                                                   डा0 शिव शंकर त्रिपाठी
ड़ा शिव शंकर त्रिपाठी
भूतपूर्व प्रभारी चिकित्साधिकारी (आयुर्वेद)
राजभवन, लखनऊ।
 
ग्रीष्म ऋतु में जहाँ लोग भंयकर गर्मी एवं लू के कारण बेचैन रहते हैं वहीं वर्षा ऋतु के आगमन पर अत्यन्त खुशी होती है। वर्षा के कारण राहत तो अवश्य मिलती है किन्तु इस ऋतु में शरीर के अन्दर पाई जाने वाली जठराग्नि जो ग्रीष्म ऋतु में पहले ही दुर्बल रहती है वह वर्षा ऋतु आने पर और भी दुर्बल हो जाती है जिससे प्राकृतिक रूप से शरीर की आन्तरिक प्रक्रिया में कुछ बाधाएं आती हैं। पाचन प्रक्रिया कमजोर रहती है, वात का प्रकोप रहता है जिससे शरीर की चयापचय प्रणाली अन्य ऋतुओं की अपेक्षा इस ऋतु में सुचार रूप से काम नहीं कर पाती, अतएव अन्य ऋतुओं की अपेक्षा इस ऋतु में आहार – विहार नियमों का पालन अति-आवश्यक है।
स्वास्थ रक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान रखा जाए तो वर्षा ऋतु में होने वाले अनेक रोगों एवं परेशानियों से आसानी से बचा जा सकता है-
इस ऋतु में पानी में अशुद्धियाॅ बढ़ जाती हैं, अतएव इसे उबालकर, छानकर एवं ठण्डा करके पीना चाहिए, आज के युग में जलशुद्धिकरण के अनेक उपकरण प्रचलित हैं किन्तु पानी को उबालते समय 10 लीटर पानी में 2 ग्रा0 (दो चुटकी) शुद्ध फिटकरी डाल दिया जाये तो पानी और भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है।
इस ऋतु में हल्का सुपाच्य और सादा आहार लेना चाहिए, पत्तीदार शाक-सब्जी का सेवन न करें, पुराने जौ, गेहूॅ, मूंग की दाल (छिलके युक्त), लौकी, परवल, तुरई आदि लेना हितकर है।
मौसम के फल जैसे आम, जामुन, मक्के के भुट्टे का सेवन करें किन्तु ध्यान रखें कि जामुन को नमक के साथ लेना चाहिए (मधुमेह के रोगियों के लिए इसकी गुठली अत्यन्त लाभकारी औषधि है जिसे इस मौसम में संग्रहित कर सुखाकर एवं इसका चूर्ण बनाकर पूरे वर्ष सेवन करना चाहिए)। मक्के के भुने भुट्टे को खूब चबाकर खायें तत्पश्चात एक कप छाछ अवश्य पियें तथा पके हुए आम को चूस कर लेना चाहिए एवं आम को दूध के साथ लेना अत्यन्त गुणकारी है (पका हुआ मीठा आम शरीर के लिए पौष्टिक एवं शक्तिवर्धक है)
श्रावण मास में दूध, भादों एवं क्वार मास मे दही और छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए किन्तु दूध की बनी मीठी खीर ले सकते हैं।
इस मौसम मंेे शाम का भोजन सूर्यास्त के पूर्व कर लेना चाहिए यदि ऐसा करना सम्भव नहीं हो तो सायं 8 बजे तक रात्रि का भोजन अवश्य कर लेना चाहिए तथा रात्रि के खाने में गरिष्ठ (देर से पचने वाले पदार्थ) कदापि सेवन न करें।
इस मौसम मे पेट को साफ रखना अत्यन्त आवश्यक है इसके लिए हरड़ चूर्ण आधा से एक चम्मच या ईसबगोल भूसी दो चम्मच रात में एक गिलास गुनगुने पानी के साथ लेना चाहिए।
इस मौसम में दिन मे कदापि न सोयें। अधिक परिश्रम एवं रात्रि जागरण भी नहीं करना चाहिए।
हल्के एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए एवं बरसात के पानी में भीग जाने पर जल्दी से जल्दी गीले कपड़े उतारकर सूखे कपड़े पहन लेने चाहिए।
इस ऋतु में नदी एवं अज्ञात जलाशयों में स्नान न करें।
नमी वाले स्थानों में न रहें और नंगे पैर बाहर नहीं निकलना चाहिए।
खुले आसमान में सोना, स्त्री सहवास में अति करना तथा वर्षा में देर रात भीगना आदि भी इस मौसम में हानिकारक है।
घर के आस पास गड्ढों आदि में जलभराव नहीं होने देना चाहिए तथा एकत्रित होने वाले कूड़े-कचड़े को बीच-बीच में साफ कराते रहना चाहिए वर्ना पानी एवं कूड़े के सड़ने के बाद मच्छरों एवं छोटे-छोटे विभिन्न प्रकार के विषाणु व कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं जिससे संक्रामक रोग फैलने का भय रहता है, इस मौसम में मच्छरों से बचना सबसे पहला काम समझना चाहिए। घर के आस पास के वातावरण को शु़द्ध रखने तथा संक्रामक रोगों से बचने के लिए नीम की पत्ती, कपूर, देवदारू, धूप, चन्दन, गन्धविरोजा, लुभान, राल, अगर, वाकुची, तेजपत्र, गंधक एवं गुगुल आदि से युक्त हवन सामग्री जलाकर धुआँ करना चाहिए। वर्तमान युग में क्रीम, स्पे्र, मैट, क्वाईल्स आदि अनेक आधुनिक साधन प्रचलित होने के बावजूद मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग आज भी सबसे उत्तम है।
 
(आयुर्वेद के विभिन्न ग्रन्थ एवं संहिताओं से संकलित)
 

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