लिव-इन में रहना क्यों बन रहा है युवाओं की पहली पसंद? 

प‍िछले कुछ सालों में मेट्रो स‍िटीज में लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। अमीर लोगों में तो ये आम हाे गया है। कोई भी अगर बाहर रहता है तो वो पार्टनर के साथ ल‍िव-इन में रहना ही पसंद करता है। हालांक‍ि अब मिडिल क्लास के लोग भी इसे अपना रहे हैं। अगर वे अपने र‍िश्‍ते को लेकर सीर‍ियस होते हैं तो वे इस दौरान देखते हैं क‍ि पार्टनर के साथ उनकी आगे की ज‍िंदगी बीत पाएगी या नहीं।

लेक‍िन हर क‍िसी के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। फ‍िल्‍हाल भारत में ये पूरी तरह से लीगल हो गया है। यानी क‍ि कोई भी कपल अब ब‍िना क‍िसी झ‍िझक के और ब‍िना शादी क‍िए साथ रह सकता है। ऐसा हम नहीं, बल्‍क‍ि अभय द्विवेदी (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, लखनऊ खंडपीठ) का कहना है। उन्‍होंने इसके बारे में व‍िस्‍तार से जानकारी दी है। आज हम आपको ल‍िव-इन में रहने के नुकसान और उसके कानून के बारे में बताएंगे।

क्‍या है ल‍िव-इन र‍िलेशन?
अभय द्विवेदी ने बताया क‍ि लिव-इन रिलेशनशिप का मतलब होता है शादी किए बिना साथ रहना। भारत में लंबे समय तक शादी से पहले साथ रहना समाज और संस्कृति के खिलाफ माना जाता था। हिंदू धर्म में ‘एकपत्नी व्रत’ (एक पुरुष, एक पत्नी) को सबसे पवित्र विवाह ही माना गया है। लेकिन समय के साथ लोगों की सोच बदल गई है और अब धीरे-धीरे लिव-इन रिलेशनशिप को भी स्वीकार किया जाने लगा है।

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कुछ देशों की तरह कानूनी शादी नहीं माना जाता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शादी किए बिना साथ रहना कोई अपराध नहीं है और न ही ये इल-लीगल है। ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को शादीशुदा जोड़े जैसे सारे अधिकार नहीं मिलते, लेकिन उन्हें हमारा कानून कुछ सुरक्षा जरूर देता है।

लिव-इन रिलेशनशिप में मिलने वाले अधिकार
उन्‍होंने बताया क‍ि भारत में लिव-इन रिलेशनशिप की कोई खास परिभाषा नहीं है। इसे बस दो लोगों की सहमति से साथ रहने का फैसला माना जाता है। इस तरह साथ रहने से लोग एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और शादी के बारे में सही फैसला ले सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही ये जानना भी जरूरी है कि लिव-इन रिलेशनशिप में क्या अधिकार मिलते हैं-

भरण-पोषण का अधिकार
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 की धारा 125 (1) (a) बताती है क‍ि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़की को भी भरण-पोषण यानी क‍ि maintenance का अधिकार है। यानी अगर उसका पार्टनर उसे फाइनेंश‍ियल सपोर्ट देने से मना करता है तो भारत का कानून लड़की की मदद करेगा।

बच्चों का प्रॉपर्टी में भी हक
अगर कोई कपल बिना शादी किए लंबे समय तक साथ रहते हैं, तो कानूनी तौर पर उन्हें शादीशुदा माना जा सकता है। अगर उनके बच्चे हैं, तो उन बच्चों को भी सारे कानूनी अधिकार मिलेंगे। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के मुताब‍िक, ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता की अपनी कमाई हुई संपत्ति (self-acquired property) में पूरा हक मिलेगा। साथ ही 144 BNSS में बच्चों को भरण-पोषण का भी अधिकार है। यानी अगर माता-पिता अलग भी हो जाएं तो भी बच्चों की जिम्मेदारी दोनों पर होगी।

बच्चों की कस्टडी का अधिकार
जब लिव-इन रिलेशनशिप खत्म हो जाती है, तो बच्चों की कस्टडी (देखभाल) एक बड़ा सवाल बन जाती है। भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के बच्चों के लिए कोई खास कानून नहीं है, इसलिए कोर्ट इन मामलों को शादीशुदा कपल के बच्चों की तरह ही देखती है। कोर्ट का सबसे पहला और जरूरी मकसद ये देखना होता है कि बच्चे का भला और भविष्य किसके साथ रहने में है।

महिलाओं की सुरक्षा और कानून
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कोई खास कानून नहीं है। लेकिन साल 2010 में महिलाओं की सुरक्षा के लिए इसे कानूनी तौर पर मान्यता दी गई। इसके बाद, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के तहत पूरी सुरक्षा मिलती है।

लिव-इन रिलेशनशिप के नुकसान भी जानें
इस रिलेशनशिप में कमिटमेंट की कमी होती है। यानी क‍ि आपका पार्टनर आपको कभी भी छोड़कर जा सकता है।
भारत में भले ही ये लीगल हाे गया है लेक‍िन अभी भी भारत की कुछ ऐसी जगहें हैं जहां ऐसे लोगों को सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है।
हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है कि रिश्ता चलेगा या नहीं। इससे तनाव बढ़ सकता है।
बिना शादी के साथ रहने पर एक समय बाद ट्रस्ट इशूज होने लगते हैं।
कई बार तो ये क्राइम का रूप भी ले चुके हैं।

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