लावारिस कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का असर

राजधानी में लावारिस कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके कारण आम लोगों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की हालिया सख्ती का सीधा असर एमसीडी के बजट में दिखा। एमसीडी आयुक्त की ओर से शुक्रवार को स्थायी समिति के समक्ष पेश किए बजट प्रस्ताव में स्पष्ट किया कि कुत्तों की संख्या नियंत्रण, नसबंदी और टीकाकरण पर फोकस होगा। इसी क्रम में शहर में पहली बार लावारिस कुत्तों में माइक्रोचिप लगाने की बड़ी पहल का ऐलान भी किया है।

एमसीडी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने हाल के महीनों में कुत्तों के बढ़ते झुंड, कुत्तों के काटने की घटनाओं और नागरिकों की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए कड़े निर्देश दिए हैं। एमसीडी ने अपने बजट में नसबंदी और टीकाकरण के लिए पिछले साल जितनी ही राशि बनाए रखी है, जिससे अभियान में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए अगले वित्तीय वर्ष में 20 करोड़ रुपये का नया प्रावधान है, जबकि वर्तमान वर्ष में पांच करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है ताकि पायलट प्रोजेक्ट तुरंत शुरू किया जा सके।

चिप कैसे करेगी काम
एमसीडी अधिकारियों के अनुसार, यह माइक्रोचिप हर नसबंद किए गए कुत्ते में लगाई जाएगी। इसमें एक विशेष आईडी नंबर होगा, जिससे कुत्ते की लोकेशन, टीकाकरण की स्थिति, स्वास्थ्य डेटा और दुबारा पकड़े जाने की आवश्यकता जैसी जानकारी मोबाइल या कंप्यूटर सिस्टम पर उपलब्ध हो सकेगी।

एमसीडी पर देनदारी का बोझ बजट के बराबर
एमसीडी का शुक्रवार को वर्ष 2026-27 के लिए 16,530 करोड़ रुपये का बजट प्रस्ताव पेश किया गया जबकि देनदारी करीब 15,791 करोड़ रुपये है। एक तरह से देनदारी और बजट लगभग बराबर है। ऐसे में एमसीडी की वित्तीय सेहत पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बजट भाषण में भी इसे विशेष रूप से रेखांकित किया गया। पहली बार एमसीडी ने देनदारी को साफ तौर पर प्राथमिकता की तरह पेश किया है।

एमसीडी के अनुसार, उसे स्थापना देय के तौर पर 7009.67 करोड़ रुपये, ठेकेदारों का भुगतान 520.06 करोड़ रुपये और लोन के तौर पर 8262.06 करोड़ रुपये देने है। एमसीडी ने वर्तमान वर्ष के दौरान 331 करोड़ रुपये देने का निर्णय लिया है और आगामी वर्ष के दौरान 667 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया है। इसके बाद भी उसकी देेनदारी साढ़े 14 हजार करोड़ रुपयेे अधिक रह जाएगी।

इस तरह एमसीडी को देनदारी खत्म करने के लिए अपनी आय बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। क्योंकि इस रफ्तार से तो उसका कर्ज खत्म होने में कई वर्ष लग जाएगे। बताया जा रहा है कि उसके ऊपर सेवानिवृत हो रहे कर्मचारियों का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। दरअसल प्रतिमाह करीब दो सौ कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे, मगर एमसीडी उनकी सेवानिवृति की राशि नहीं दे पा रही है। इस कारण उस पर लगातार कर्ज बढ़ रहा है।

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