लद्दाख की बेटी स्टैनजिन अंगमो बनी MMA की स्टार, जीते स्वर्ण और रजत पदक

लद्दाख की स्टैनजिन अंगमो ने सादगी भरे गांव से निकलकर मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स (एमएमए) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण और रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। लद्दाख कॉम्बैट अकादमी और कोच के सहयोग से उन्होंने अपने सपनों को हकीकत में बदला।
हेमिस शुकपाचन लद्दाख का एक छोटा, शांत गांव। यहीं से निकलती है एक साधारण सी लड़की स्टैनजिन अंगमो, जिसने अपने दृढ़ निश्चय, मेहनत और जुनून से मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स (एमएमए) की दुनिया में अपनी एक खास पहचान बनाई।
सरकारी ड्राइवर पिता और गृहिणी मां की बेटी अंगमो का बचपन सादगी और अनुशासन से भरा रहा। गांव की शांत जिंदगी ने उन्हें मेहनत, विनम्रता और धैर्य का महत्व सिखाया। एक दिन टीवी पर एमएमए फाइटर्स को देखकर उनके मन में कुछ अलग करने की इच्छा जगी। वो सिर्फ उनकी ताकत से नहीं, बल्कि उनके अनुशासन और मानसिक दृढ़ता से प्रभावित हुईं।
शुरुआत आसान नहीं थी। जब अंगमो ने एमएमए सीखने की इच्छा अपने परिवार से जाहिर की, तो शुरुआत में उन्हें समझ नहीं आया। वे चोटों को लेकर चिंतित थे। लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने अंगमो का समर्पण और इस खेल के प्रति प्यार देखा, उनका समर्थन भी बढ़ता गया।
अंगमो की यात्रा का असली मोड़ तब आया, जब एक दोस्त ने उन्हें लद्दाख कॉम्बैट अकादमी (एलसीए) के बारे में बताया। यह न सिर्फ एक ट्रेनिंग सेंटर, बल्कि उनके जीवन का दूसरा घर बन गया। कोच जिग्मेट सिंगाय ओड्डन के मार्गदर्शन में अंगमो ने खुद को एक सच्चे फाइटर के रूप में ढालना शुरू किया।
कड़ी मेहनत और समर्पण के दम पर उन्होंने एजेपी टूर 2025 जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के मंच पर न सिर्फ हिस्सा लिया, बल्कि स्वर्ण और रजत पदक जीतकर लद्दाख और देश का नाम रोशन किया।
अंगमो आज सिर्फ एक एमएमए फाइटर नहीं हैं, बल्कि एक प्रेरणा हैं उन तमाम लड़कियों के लिए जो सपने तो देखती हैं लेकिन सोचती हैं कि क्या वो उन्हें पूरा कर भी पाएंगी।
स्टैनजन अंगमो का संदेश साफ है:
अगर तुमने सपने देखे हैं, तो शुरुआत करो। चलते रहो। और अगर किस्मत साथ दे, तो तुम्हें एलसीए जैसे लोग जरूर मिलेंगे जो तुम्हारे साथ खड़े रहेंगे।
उनकी कहानी बताती है कि बड़ी शुरुआत हमेशा बड़े शहरों से नहीं होती कई बार वह एक छोटे से पहाड़ी गांव की तंग गलियों से शुरू होती है, लेकिन मंजिलें बहुत दूर तक जाती हैं।