कुछ ऐसे बदल रहे हैं, राहुल और अखिलेश यूपी की राजनीतिक हवा

जो लोग व्यवस्था में सुधार और बुनियादी-आर्थिक विकास के सकारात्मक प्रचार के बलबूते चुनाव जीत कर आए थे। राजनीति को स्वच्छ करने और चुनाव जीतने के दावे करते थे, वे कामों को कारनामे बता कर उनका मजाक उड़ाने लगे। रोमियो स्क्वॉड जैसी मध्ययुग की बातें करने लगे और कच्चे चिट्ठे खोलने की धमकियाँ देने लगे। दुष्यन्त कुमार की अमर पंक्तियों, “कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं,” की याद दिलाने लगे। इन विधानसभा चुनावों की सबसे निराशाजनक बात यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुशासन, स्वच्छता, भ्रष्टाचार मुक्ति और विकास की बातें छोड़ कर लोगों को बाँटने, उकसाने और धमकाने की बातें शुरू कर दी हैंकुछ ऐसे बदल रहे हैं, राहुल और अखिलेश यूपी की राजनीतिक हवा 
स्वच्छ इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्किल इंडिया और न जाने क्या-क्या इंडिया, सब कहीं खो गए हैं। बीजेपी की सबसे बड़ी कमी यह रही कि उसने स्वच्छ राजनीति की बातें करते-करते सबसे अधिक आपराधिक छवि वाले लोगों को मैदान में उतारा है।

अखिलेश और राहुल भी विकास और नई राजनीति के नाम पर मोबाइल फोन, कंप्यूटर और साइकिल बाँटने, किसानों के कर्जे माफ करने या फिर फीताकटी शहरी योजनाओं के ढोल पीटते फिर रहे हैं।
गाँवों की गलियाँ, कस्बों और छोटे शहरों के बाजार दिनों-दिन गंदे पानी और कीचड़ से बजबजाते जा रहे हैं। कहीं नालियों और मलजल निकासी की व्यवस्था नहीं है। कूड़े के ढेर लगे रहते हैं। नलों में एक तो पानी आता नहीं, आता है तो ऐसा कि पिया जाता नहीं। बिजली नहीं। सड़कों के नाम पर गड्ढे हैं।

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